महाभारत के समय कुरुक्षेत्र में जब भगवान श्री कृष्ण ने, भीषण हथियारों के साथ, महाभयंकर कौरव सेना को युद्ध के लिए उपस्थित देखा तो उन्होंने कुछ सोचकर, अर्जुन से उनके हित के लिए कहा- हे अर्जुन तुम रणक्षेत्र में इन भीषण योद्धाओं को पराजित करने के लिए तुम पवित्र भाव से भगवती दुर्गा की आराधना करो, तुम निःसंदेह विजयी होगे |
यद्यपि भगवान कृष्ण को पता था कि अर्जुन प्रतापी योद्धा हैं लेकिन दूसरी तरफ ब्रह्माण्ड की भयंकर नकारात्मक शक्तियां उपस्थित थीं इसलिए उनसे पार पाने के लिए भगवती, जो साक्षात शक्तिस्वरूपा हैं, की कृपा आवश्यक थी |
मेघराज की क्षाती पर करोड़ो सूर्य की आभा लिए कौंधने वाली विद्युत् के समान केशव का चेहरा गंभीर से गंभीरतर हो रहा था | अर्जुन ने एक दृष्टी उनके चेहरे पर डाली और अपने रथ से उतर गए | वहीँ युद्ध भूमि पर, दोनों हाँथ जोड़कर उन्होंने देवी दुर्गा का ध्यान किया और उनकी आराधना करने लगे, जो इस प्रकार है-
हे सिद्ध-समुदाय की नेत्री आर्ये ! तुम मन्दराचल के विपिन में निवास करती हो, तुम्हारा कौमार्य (ब्रह्मचर्य) व्रत अक्षुण है, तुम काल-शक्ति एवं कपाल-धारिणी हो, तुम्हारा वर्ण कपिल और कृष्णपिंगल है, तुम्हे मेरा नमस्कार है | भद्रकाली तथा महाकाली रूप में तुम्हे नमस्कार है | अत्यंत कुपित चंडिका रूप में तुम्हे प्रणाम | हे सुन्दरि ! तुम्ही संकटों से पार कराने वाली हो; तुम्हे सादर नमस्कार | तुम मोर-पंख की ध्वजा धारण करती हो और नाना प्रकार के आभूषणों से भूषित रहती हो | हे महाभागे ! तुम्ही कात्यायनी, कराली, विजया तथा जया हो | अत्यंत उत्कट शूल तुम्हारा शस्त्र है, तुम खंग तथा चर्म धारण करती हो | हे ज्येष्ठे ! तुम गोपेन्द्र श्री कृष्ण जी की छोटी बहिन और नंदगोप के कुल की कन्या हो | हे पीताम्बर-धारिणी कौशिकी ! तुम्हे महिषासुर का रक्त सदा ही प्यारा है, तुम्हारा हास उग्र और मुख गोल चक्र के समान है, हे रणप्रिये ! तुम्हे नमस्कार है | उमा, शाकम्भरी, महेश्वरी, कृष्णा, कैटभनाशिनी, हिरण्याक्षी, विरुपाक्षी और धूम्राक्षी आदि रूपों में तुम्हे मेरा प्रणाम | हे देवी ! तुम्ही वेद-श्रवण से होने वाला महान पुण्य हो, तुम वेद एवं ब्राह्मणों की प्रिय तथा भूतकाल को जानने वाली हो | जम्बूद्वीप की राजधानियों और मंदिरों में तुम्हारा निवास स्थान है | हे भगवति ! कार्तिकेयजननि ! हे कान्तारवासिनी ! दुर्गे ! तुम विद्याओं में महाविद्या और प्राणियों में महानिद्रा हो | हे देवि तुम्ही स्वाहा, स्वधा, कला, काष्ठा, सरस्वती, सावित्री, वेदमाता और वेदांत आदि नामो से कही जाती हो | हे महादेवि ! मैंने विशुद्ध चित्त से तुम्हारी स्तुति की है | तुम्हारे प्रसाद से रण क्षेत्र में मेरी सदा ही विजय हो | बीहड़ पथ, भय जनक स्थान, दुर्गम भूमि, भक्तों के गृह तथा पाताल लोक में तुम निवास करती हो और संग्राम में दानवों पर विजय पाती हो | तुम्ही जम्भनी (तन्द्रा), मोहिनी (निद्रा), माया, लज्जा, लक्ष्मी, संध्या, प्रभावती, सावित्री, तथा जननी हो | तुष्टि, पुष्टि, धृति, तथा सूर्य और चन्द्रमा को अधिक कान्तिमान बनाने वाली ज्योति भी तुम्ही हो | तुम्ही भूति-मानो को भूति (ऐश्वर्य) हो और समाधि में सिद्ध तथा चारण जन तुम्हारा ही दर्शन करते हैं |
इस प्रकार स्तुति करने पर मनुष्यों पर कृपा रखने वाली भगवती दुर्गा, अर्जुन की भक्ति को समझ कर भगवान श्री कृष्ण के सामने ही आकाश में स्थित हो कर बोली “हे पांडु नन्दन ! तुम स्वयं नर हो और दुर्धर्ष नारायण तुम्हारे सहायक हैं, अतः तुम थोड़े ही समय में शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लोगे | रण में शत्रुओं की कौन कहे साक्षात् इंद्र के भी तुम अजेय हो |
ऐसा कहकर वर दायिनी देवी दुर्गा वहीँ उसी क्षण अन्तर्हित हो गयी | उस समय, महाभारत युद्ध के बीच अर्जुन और श्री कृष्ण के प्रसन्नता की कोई सीमा न थी | अत्यंत प्रभावशाली यह स्तुति यद्यपि संस्कृत में उपलब्ध थी लेकिन पाठकों के लिए हमने जानबूझ कर इसे हिंदी में दिया है जिससे इसका पाठ करने में त्रुटी की सम्भावना कम से कम हो |
शारदीय नवरात्र, शक्तिस्वरूपा देवी की साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त समय होता है | ऐसे समय शुद्ध चित्त से, सभी के हित की कामना से, इस अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र से परम शक्ति की साधना करने से अत्यंत आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं | यह अत्यंत गोपनीय व दुर्लभ है | शत्रुओं पर विजय प्राप्ति की अभिलाषा रखने वालों को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए |