महाभारत युद्ध के सत्रहवें दिन भयंकर मारकाट मची थी | धृतराष्ट्र संजय से बोले “संजय ! भीमसेन ने जो कर्ण को रथ की बैठक में गिरा दिया, यह तो उन्होंने बड़ा दुष्कर काम किया । उसी के भरोसे दुर्योधन मुझ से बार-बार कहा करता था कि ‘अकेले कर्ण ही पाण्डवों और संजयों को युद्ध में मार डालेगा ।’ अब भीम के हाथों कर्ण को पराजित देख मेरे पुत्र दुर्योधन ने क्या किया?
संजय ने कहा “महाराज ! उस महासंग्राम में कर्ण को युद्ध से विमुख होते देख दुर्योधन ने अपने भाइयों से कहा-‘तुम लोग शीघ्र जाकर कर्ण की रक्षा करो । वह भीमसेन के भय के कारण अगाध संकट-समुद्र में डूब रहा है ।’ राजा की आज्ञा पाकर वे क्रोध में भर गये और जिस प्रकार पतंगे आग की ओर दौड़ते हैं, उसी प्रकार भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उन पर टूट पड़े ।
श्रुतर्वा, दुर्धर, क्राथ, विवित्सु, विकट, सम, निषंगी, कवची, पाशी, नन्द, उपनन्द, दुष्प्रधर्ष, सुबाहु, वातवेग, सुवर्चा, धानुह, दुर्मद, जलसन्ध, शल और सह-ये लोग रथियों से घिरे हुए दौड़े और भीमसेन को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये । फिर तो उन्होंने नाना प्रकारके बाणोंकी झड़ी लगा दी ।
महाबली भीमसेन उनके प्रहारों से पीड़ित हो रहे थे, तो भी उन्होंने आपके पुत्रों के पाँच सौ रथों की धज्जियाँ उड़ा दी और पचास रथियों को यमलोक भेज दिया । फिर, क्रोध में भरे हुए भीम ने एक भल्ल मारकर विवित्सु के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया । उसकी मृत्यु होती देख सभी भाई भीम पर टूट पड़े । तब उन्होंने दो भल्लों से आपके दो पुत्र विकट और सह के प्राण ले लिये ।
लगे हाथ भीमसेन ने तेज किये हुए नाराच से मारकर क्राथ को भी यमलोक भेज दिया । महाराज ! इस प्रकार जब आपके वीर धनुर्धर पुत्र मारे जाने लगे तो रणभूमि में बड़े जोर से हाहाकार मचा । उनकी सेना का संहार करके भीम ने नन्द और उपनन्द को भी मौत के घाट उतारा ।
अब तो आपके पुत्र भय से घबरा उठे । वे भीमसेन को प्रलय-कालीन यमराज के समान भयंकर जानकर वहाँ से भाग गये । आपके इतने पुत्र मारे गये-यह देख कर्ण का मन बहुत उदास हो गया । उसकी आज्ञा से मद्रराज ने पुनः घोड़े बढ़ाये । वे घोड़े बड़े वेग से आकर भीमसेन के रथ से भिड़ गये । फिर तो एक-दूसरे का वध चाहने वाले कर्ण और भीमसेन में बालि-सुग्रीव की भाँति भयंकर युद्ध होने लगा ।
कर्ण ने अपने सुदृढ़ धनुष को कान तक बैंच कर तीन बाणों से भीमसेन को बींध डाला । उन्होंने भी एक भयंकर बाण हाथ में लेकर उसे कर्ण पर चलाया । उस बाण ने कर्ण का कवच फाड़कर उसके शरीर को छेद दिया । उस प्रचण्ड प्रहार से कर्ण को बड़ी व्यथा हुई, वह व्याकुल होकर काँपने लगा । फिर रोष और अमर्ष में भरकर उसने भीमसेन को पचीस बाण मारे ।
फिर अनेकों सायकों का प्रहार करके एक बाण से उनकी ध्वजा काट डाली । इसके बाद एक भल्ल से मारकर उनके सारथि को भी मौत के घाट उतार दिया । लगे हाथ धनुष भी काट डाला; फिर एक ही मुहूर्त में हँसते हँसते उसने भीमसेन को रथहीन कर दिया । रथ के टूटते ही महाबाहु भीमसेन गदा हाथ में लिये हँसते-हँसते कूद पड़े ।
फिर वेग से उछलकर वे आपकी सेना में घुस गये और गदा मार-मारकर समस्त सैनिकों का संहार करने लगे । पैदल होते हुए ही उन्होंने अपनी गदा से सात सौ हाथियों को उनके सवारों, ध्वजाओं और अस्त्र-शस्त्रों सहित नष्ट कर डाला । इसके बाद शकुनि के अत्यन्त बलवान् बावन हाथियों को मार गिराया तथा एक सौ से अधिक रथों और सैकड़ों पैदलों का संहार कर डाला ।
ऊपर से सूर्यदेव तपा रहे थे और सामने भीमसेन संताप दे रहे थे; इससे समस्त योद्धा भीम के डर से मैदान छोड़कर भाग निकले । इतने ही में दूसरी ओर से पाँच सौ रथियों ने आकर भीम पर चारों ओर से बाण-वर्षा आरम्भ कर दी, परंतु भीम ने उन सबको गदा से मारकर यमलोक पठा दिया । साथ ही उनकी ध्वजा-पताका और आयुधों के भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले ।
तत्पश्चात् शकुनि के भेजे हुए तीन हजार घुड़सवारों ने हाथों में शक्ति, ऋष्टि और प्रास लेकर भीमसेन पर धावा किया । भीमसेन ने बड़े वेग से आगे बढ़कर उनका मुकाबला किया और तरह-तरह के पैंतरे बदलते हुए उन्होंने उन सबको गदा से मार डाला । इसके बाद भीमसेन दूसरे रथ पर सवार हुए और क्रोध में भरकर कर्ण का सामना करने के लिये पहुँच गये । उस समय कर्ण और युधिष्ठिर में युद्ध चल रहा था ।
कर्ण ने अपने बाणों से युधिष्ठिर को आच्छादित कर दिया और उनके सारथि को भी मार गिराया । सारथि के न होने से घोड़े भाग चले । उनके रथ को पलायन करते देख महारथी कर्ण बाणों की बौछार करता हुआ उनका पीछा करने लगा । कर्ण को धर्मराज का पीछा करते देख भीमसेन क्रोध से जल गये । उन्होंने अपने बाणों से पृथ्वी और आकाशको चारों ओरसे ढक दिया । इसके बाद कर्ण पर भी भीषण बाण-वर्षा की ।
कर्ण लौट पड़ा । उसने भी सब ओर से तीखे बाणों की वर्षा करके भीम को आच्छादित कर दिया । कर्ण और भीम दोनों ही धनुर्धरों में श्रेष्ठ थे । उस समय एक-दूसरे पर विचित्र-विचित्र बाणों का प्रहार करते हुए उन दोनों ने अन्तरिक्ष में बाणों का जाल-सा बुन दिया । यद्यपि उस वक्त मध्याह्न का सूर्य तप रहा था, तो भी उन दोनों के सायक समूहों से रुक जाने के कारण उसकी प्रखर प्रभा नीचे नहीं आने पाती थी ।
उस समय शकुनि, कृतवर्मा, अश्वत्थामा, कर्ण और कृपाचार्य-ये पाँच वीर पाण्डव-सेना से लोहा ले रहे थे । उनको डटे हुए देख भागने वाले कौरव योद्धा भी पीछे लौट पड़े । फिर तो दोनों पक्ष की सेनाएँ एक दूसरी से गुथ गयीं । उस दुपहरी में जैसा भयंकर युद्ध हुआ, वैसा मैंने न तो कभी देखा था और न सुना ही था । एक ओर के सैनिकों का झुंड दूसरी ओर के झुंड से सहसा जा भिड़ा ।
भीषण मारकाट मच गयी । छूटते हुए बाण समूहों की आवाजें बहुत दूर तक सुनायी देने लगीं । उस समय महान् सुयश चाहने वाले दोनों पक्ष के योद्धाओं की सिंहगर्जना एक क्षण के लिये भी बंद नहीं होती थी । दोनों दलों में इतना भयानक युद्ध हुआ कि खून की नदियाँ बह चलीं । कितने ही क्षत्रिय उनमें डूबकर यमलोक पहुँच जाते थे ।
सब ओर मांस भोजी जन्तुओं का चीत्कार हो रहा था । कौए, गिद्ध और वक आदि पक्षी मड़रा रहे थे । उस भयंकर संग्राम में कौरव-सेना बहुत कष्ट पाने लगी । उस समय उसकी दशा समुद्र में टूटी हुई नौका के समान हो रही थी |