एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था | वह पुरोहिताई करता था । पुरोहिताई से जो कुछ प्राप्त हो जाता था, उसी से अपना और अपने कुटुंबियों का निर्वाह करता था । एक दिन ब्राह्मण एक अन्य गांव में पूजा कराने के लिए गया । जब पूजा समाप्त हो गई, तो यजमान ने ब्राह्मण को दक्षिणा के रूप में एक बकरी प्रदान की । बकरी बड़ी मोटी-ताजी थी |
ब्राह्मण बकरी को कंधे पर लादकर अपने घर की ओर चल पड़ा । मार्ग में उसे तीन धूर्त मिले । धूर्तों ने जब ब्राह्मण के कंधे पर मोटी-ताजी बकरी देखी, तो उनके मुंह में पानी आ गया । उन्होंने सोचा, बकरी का मांस बड़ा स्वादिष्ट होगा | यदि किसी तरह बकरी मिल जाती तो बड़ा अच्छा होता । पर बकरी मिले तो कैसे मिले ? मांगने से तो ब्राह्मण बकरी देने वाला नहीं । तीनों धूर्त आपस में सोच-विचार करने लगे ।
एक धूर्त ने कहा, “ब्राह्मण इस तरह तो बकरी देगा नहीं । उसे किसी प्रकार मूर्ख बनाकर बकरी ले लेनी चाहिए ।” दूसरे धूर्त ने भी पहले धूर्त की बात का समर्थन किया, पर प्रश्न यह पैदा हुआ कि ब्राह्मण को मूर्ख बनाया जाए, तो किस प्रकार बनाया जाए ? तीनों धूर्त ब्राह्मण को मूर्ख बनाने के लिए उपाय सोचने लगे | सहसा तीसरा धूर्त बोल उठा, “मैंने ब्राह्मण को मूर्ख बनाने का उपाय सोच लिया है ।”
तीसरे धूर्त ने दोनों साथियों के कानों में अपना उपाय बता दिया | ब्राह्मण कंधे पर बकरी रखे हुए अपने घर की ओर बढ़ता जा रहा था । तीनों धूर्त भी ब्राह्मण के दाएं-बाएं चलने लगे । कुछ दूर जाने पर पहला धूर्त ब्राह्मण के सामने जा पहुंचा, बोला, “ब्राह्मण देवता, कंधे पर कौन-सी चीज रख कर ले जा रहे हो ?”
ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “क्या अंधे हो, दिखाई नहीं दे रहा है कंधे पर बकरी है; और क्या है ?” धूर्त बोला, “बकरी है ! क्या कह रहे हो ? तुम्हारे कंधे पर तो कुत्ता है । कुत्ते को बकरी कह रहे हो ? अरे, पागल तो नहीं हो गए हो ? राम-राम, ब्राह्मण होकर कंधे पर कुत्ता लादे हो ? लोग देखते होंगे तो क्या कहते होंगे ?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “सचमुच तुम अंधे ही हो, तभी तो बकरी को कुत्ता कह रहे हो । जाओ-जाओ, अपनी आंख का इलाज कराओ, भाई, यहाँ से जाओ ।”
पहला धूर्त बोला, “मुझे क्या, तुम कंधे पर बकरी लादो या कुत्ता । मैं तो तुम्हारे भले के लिए कह रहा हूं । तुम्हें कंधे पर कुत्ता लादे हुए देखकर लोग तुम्हारी बदनामी तो करेंगे ही, पूरी ब्राह्मण जाति की बदनामी भी किए बिना नहीं रहेंगे । कहेंगे, अब ऐसा जमाना आ गया कि ब्राह्मण कंधे पर कुत्ते लादने लगे ।” पहला धूर्त अपनी बात समाप्त करके ब्राह्मण के सामने से दूर चला गया ।
कुछ और आगे जाने पर दूसरा धूर्त ब्राह्मण के सामने पहुंचा, बोला, “ब्राह्मण देवता, यह कंधे पर क्या लादे हुए हो ? बछड़ा ! क्या बछड़े की टांग टूट गई है ?” ब्राह्मण बोला, “अरे, अरे ! दिन में ही तुम्हें दिखाई नहीं देता ! इसीलिए बकरी को बछड़ा कह रहे हो । अरे भाई, मेरे कंधों पर बछड़ा नहीं, बकरी है, बकरी । यह मुझे दक्षिणा में मिली है ।”
दूसरा धूर्त बोला, “ब्राह्मण देवता, लगता है, तुम्हारा सिर फिर गया है, इसीलिए तुम बछड़े को बकरी कह रहे हो । मैं तो साफ-साफ देख रहा हूं, तुम्हारे कंधे पर बछड़ा है । मुझे क्या कंधे पर बकरी लादो या बछड़ा । मैंने जो देखा, उसके बारे में तुमसे पूछ लिया ।” दूसरा धूर्त भी अपनी बात समाप्त करके ब्राह्मण के सामने से खिसक गया ।
ब्राह्मण के मन में संदेह पैदा हो उठा-क्या बात है ? एक आदमी ने तो कहा, कंधे पर बकरी नहीं, कुत्ता है | और दूसरे आदमी ने कहा, कंधे पर बकरी नहीं, बछड़ा है । क्या सचमुच मेरे कंधे पर बकरी नहीं, कुछ और है ? कुछ और आगे जाने पर तीसरा धूर्त भी ब्राह्मण के सामने जा पहुंचा, बोला, “वाह-वाह, ब्राह्मण होकर कंधे पर गधी का बच्चा लादे हुए हो ? राम-राम, कैसा समय आ गया ?”
ब्राह्मण बोला, “क्या कह रहे हो ? मेरे कंधे पर तो बकरी है । तुम बकरी को गधी का बच्चा बता रहे हो ? अंधे हो क्या ? ” तीसरा धूर्त बोला, “मैं अंधा हूं या नहीं, तुम पागल अवश्य हो । कंधे पर गधी का बच्चा लादे हुए हो, और उसे बकरी बता रहे हो ! पागल न होते, तो ऐसा न कहते ।”
तीसरा धूर्त भी अपनी बात समाप्त करके आगे बढ़ गया | ब्राह्मण के मन का संदेह प्रबल हो उठा ।
वह सोचने लगा-अवश्य कोई न कोई बात है । तभी एक आदमी ने बकरी को कुत्ता, दूसरे आदमी ने बछड़ा और तीसरे आदमी ने गधी का बच्चा बताया । कहीं यह बकरी पिशाचिनी तो नहीं है । जरूर पिशाचिनी ही है, तभी भिन्न-भिन्न रूप धारण करती है । संदेह के कारण ब्राह्मण को बकरी सचमुच पिशाचिनी के रूप में दिखाई देने लगी । ब्राह्मण डर गया । वह बकरी को कंधे से फेंककर भाग खड़ा हुआ |
तीनों धूर्त बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने कहा, “अहा, हा! हमने ब्राह्मण को कैसा मूर्ख बनाया !” तीनों धूर्त बकरी को अपने घर ले गए । बकरी का क्या हाल हुआ, यह बताने से क्या लाभ ? लाभ की बात तो यह है कि सदा अपनी बुद्धि से काम लेना चाहिए । ब्राह्मण यदि बुद्धि से काम लेता तो धूर्तों के द्वारा ठगा न जाता |
कहानी से शिक्षा
किसी अपरिचित की बात पर सहसा विश्वास नहीं कर लेना चाहिए । किसी के मुख से सुनी बात को सच न मानकर उस पर विचार करना चाहिए । सदा अपनी बुद्धि से ही काम करना चाहिए ।