रावण ब्राह्मण वंश में पैदा हुआ था उसके पिता ऋषि विश्रवा और पितामह पुलत्स्य ऋषि महान तपस्वी एवं धर्मज्ञ थे | किन्तु माता के असुर कुल की होने की वजह से उसमे आसुरी संस्कार आ गए थे |
ऋषि विश्रवा की दो पत्नियाँ थी एक का नाम इडविडा था जो ब्राह्मण कुल से थी तथा जिनकी संतान कुबेर थे | दूसरी पत्नी का नाम कैकसी था जो असुर कुल से थी | ऋषि विश्रवा की इनसे, रावण, कुम्भकर्ण, सूपर्णखा आदि संताने थी | कुबेर इन सारे भाई बहनों मे सबसे बड़े थे | उनका वैसा ही सम्मान था |
ये बात महत्वपूर्ण है कि रावण, विभीषण आदि जब बाल्यावस्था में थे तभी कुबेर देवताओं में धनाध्यक्ष की पदवी प्राप्त कर चुके थे | ये कुबेर का पुरुषार्थ ही था जो उन्हें ऐसी पद-प्रतिष्ठा तथा सम्मान दिलाया | वास्तव में कुबेर की पद-प्रतिष्ठा से रावण की माँ इर्ष्या करती थी और रावण को कोसा करती थी |
एक दिन रावण के मन में ठेस लगी और अपने भाइयों (कुम्भकर्ण और विभीषण) को साथ में लेकर तपस्या करने चला गया | रावण का भ्रात्र प्रेम अप्रतिम था | इन तीनो भाइयों की तपस्या सफल हुई और तीनो भाइयों ने ब्रह्मा जी से स्वेच्छा से वरदान प्राप्त किया |
रावण इतना अधिक बलशाली था कि सभी देवता, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, विद्याधर तथा ग्रह-नक्षत्र उससे घबराते थे | ग्रंथों में ऐसा लिखा है कि रावण ने लंका में दसों दिक्पालों को पहरे पर नियुक्त किया हुआ था |
रावण की पत्नी मंदोदरी जब माँ बनने वाली थी (मेघनाद के जन्म के समय) तब रावण ने समस्त ग्रह-मंडल को एक निश्चित स्थिति में रहने के लिए सावधान कर दिया था जिससे उत्पन्न होने वाला पुत्र अत्यंत तेजस्वी, शौर्य, पराक्रम से युक्त हो | इससे हमें रावण के प्रचंड ज्योतिष ज्ञान का पता चलता है |
उसें ऐसा समय साध लिया था जिस समय में यदि किसी का जन्म हो तो वो अजेय एवं अमितायु (अत्यंत दीर्घायु) से संपन्न होगा | लेकिन जब मेघनाद का जन्म हुआ तो बाकि सरे ग्रहों ने आज्ञा का पालन किया किन्तु ठीक उसी समय दैवीय प्रेरणा से शनि ग्रह ने अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लिया |
जिस स्थिति में शनि के होने की वजह से रावण का पुत्र दीर्घायु होता, स्थिति परिवर्तन से वही पुत्र अब अल्पायु हो गया | रावण इससे अत्यंत क्रोधित हो गया | इस भयंकर क्रोध में उसने शनि के ऊपर गदा का प्रहार किया जिससे शनि के पैर में चोट लग गयी और वो पैर से कुछ लाचार हो गए अर्थात लंगड़े हो गए |
इन सब वजहों से रावण-पुत्र मेघनाद, प्रचंड पराक्रमी, तेजस्वी और शौर्यवान तो था लेकिन अल्पायु था और शेषनाग जी के अंश लक्ष्मण जी के द्वारा मारा गया |
आज हममे से बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे (जो ज्योतिष विद्या में विश्वास रखते हैं) जो पत्नी के गर्भ में पल रहे अपनी होने वाली संतान को, आने वाले विशिष्ट योग में ही जन्म लेने के लिए योग्य चिकित्सको की सहायता या शल्य क्रिया आदि की सहायता लेते हैं लेकिन इस धरती पर कभी कोई ऐसा भी जन्मा था जिसने अपनी संतान जन्म के समय पर ग्रह-नक्षत्रो को ही बाध्य कर दिया था विशिष्ट मुहूर्त के लिए !