विश्व की महानतम सभ्यताओं में से एक है मिस्र की रहस्यमय सभ्यता ! रहस्यमय इसलिए क्योकि नील नदी के किनारे बसी और फली-फूली इस सभ्यता के कई प्राचीन अवशेष आज भी दुनिया को हैरत में डाले हुए है | उन्ही रहस्यों में से एक हैं मिस्र के पिरामिड, जो न सिर्फ़ उच्च स्तर की तकनीकि और इंजीनियरिंग का उदहारण हैं बल्कि सहस्त्रो वर्षों से समय की रेत में दफ़न, मिस्र की सभ्यता पर प्रकाश भी डालते हैं |
ऊँचे अट्टालिकाओं जैसे भवन, आलीशान महलों एवं भव्य मन्दिरों से सजे इस देश में कभी एक सार्वभौम सत्ता- फराओं का राज था | फराओं वहां के राजवंश को कहते थे | आज से लगभग 3370 वर्ष पहले मिस्र के सिंहासन पर फ़राओं, अमेन्होतेप चतुर्थ विराजमान था | अन्य फ़राओं शासको की ही भांति अमेन्होतेप को भी अपने देश मिस्र में असीमित अधिकार प्राप्त थे |
लेकिन अमेन्होतेप स्वभावतः अंतर्मुखी था उसके ह्रदय में, अपने देश में फ़ैली धार्मिक अव्यवस्था में सुधार करने का विचार प्रबल रूप से उठ रहा था | मिस्र में उस समय बहुदेव वाद अपने प्रचंड रूप में था | पुजारियों के बहुत सारे कर्मकांड उसे व्यर्थ के लगते | उसका मानना था कि मुख्य ईश्वर तो एटन (भगवान सूर्य) हैं, उन्ही से शक्ति लेकर बाकी सारे देवता अपने रूप में हैं अतः पूजा भी एटन की ही होनी चाहिए | लेकिन इस विचार को व्यावहारिकता में लाना और पूरे देश में स्थापित करना तलवार की धार पर चलने के सामान था |
मिस्र की सामाजिक व्यवस्था धर्म पर आधारित थी सम्राट को भी सार्वभौमिक अधिकार धर्म की वजह से मिले हुए थे ऐसे में समस्त पुजारी वर्ग से दुश्मनी मोल लेना और जन सामान्य की भावनाओं को बदलना एक अत्यंत कठिन और साहसिक कदम था | मिस्र की सीमाएं काफ़ी दूर तक फ़ैली हुईं थी, इतनी दूर तक की विश्व की लगभग हर बड़ी सभ्यता के मिस्र से सम्बन्ध थे |
अमेन्होतेप की इस ऐतिहासिक महत्वाकांछा ने जब प्रचण्ड रूप धारण किया तो उसके लिए शांत बैठना असंभव हो गया | फ़राओं के राजमहल से कई राजाज्ञाएं जारी की गयीं | पुजारी और सामंत वर्ग में खलबली मच गयी | नए धर्म को ज्ञान और तर्क की कसौटी पर रखने के साथ ही जन-साधारण में उसे लोकप्रिय बनाने के हर संभव प्रयास किये गए | नए धर्म में एकमात्र भगवान सूर्य की पूजा करने के आवाहन के साथ ही सम्राट ने एक नया नाम धारण किया-‘अखेनाटेन’ | अमेन्होतेप अब अखेनाटेन था |
उसके इस अभूतपूर्व साहसिक कार्य में उसे सबसे बड़ा सहयोग मिला अपनी प्रधान सम्राज्ञी नेफेर्तिती से | इतिहास में नेफेर्तिती ‘नील नदी की शासिका’ और ‘देवताओं की पुत्री’ आदि नाम से प्रसिद्ध है | कई इतिहासकारों के अनुसार अतीत में ‘सौन्दर्य और बद्धिमत्ता’ का अद्वितीय संगम सर्वप्रथम नेफेर्तिती में ही दिखा | कहा जाता है कि नेफेर्तिती ने अपने जीवन काल में अभूतपूर्व शक्ति अर्जित की और फ़राओं के उस पद पर आसीन हुई जिस पर हमेशा से पुरुष सम्राटों का वर्चस्व रहा था |
यद्यपि अखेनाटेन के शासन के बारहवें वर्ष के आते-आते नेफेर्तिती का नाम विवादों से जुड़ने लगा था लेकिन उसके बाद नेफेर्तिती का नाम मिस्र के इतिहास के पन्नों से, अचानक से, गायब हो गया | हाँलाकि नए धर्म में, जो की मुख्य रूप से सूर्य भगवान् की पूजा पर आधारित था, अखेनाटेन और नेफेर्तिती को प्रथम पुरुष एवं स्त्री के अवतार के रूप में (जैसे हिन्दू धर्म में मनु और शतरूपा) दिखाया गया था, उसके बाद भी नेफेर्तिती के नाम का मिस्र के इतिहास से अचानक से गायब हो जाना और उसकी ममी रुपी समाधि का आज तक न मिलना एक रहस्य है |
नेफेर्तिती, पूरे मिस्र में अपनी अद्वितीय सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध थी | उसे अपनी लम्बी और हंस जैसी सुडौल गर्दन पर गर्व था | कहा जाता है कि उसने अपने सौन्दर्य के श्रंगार के लिए स्वयं से कुछ आविष्कार किये थे जिसमे वो गैलेना नाम के एक विचित्र पौधे का प्रयोग करती थी | वो अक्सर अपने नाम का प्रयोग, एक प्रकार की लम्बी स्वर्ण-माला (जो पूरे गले तक फ़ैली हुई होती है) जिसे ‘नेफ़र’ कहते थे, के साथ करती थी |
नेफेर्तिती किस वंश की थी ये आज भी रहस्य है यद्यपि कुछ जगहों पर उसकी छोटी बहन ‘मौत्नेमेंद्जेत’ का नाम मिलता है | कुछ मिस्र के इतिहास के विद्वानों के अनुसार नेफेर्तिती, मितन्नी राजवंश की राजकुमारी थी जिसका वास्तविक नाम ‘तदूक्षिपा’ था | वहीँ कुछ इतिहासकारों के अनुसार तदूक्षिपा, अखेनाटेन की दूसरी पत्नी थी |
अखेनाटेन के शासन के चौथे वर्ष तक एटन वहां के मुख्य भगवान हो चुके थे | युवा पीढ़ी के मन में उत्साह था नए धर्म को लेकर उन्होंने अखेनाटेन को पूरा समर्थन दिया लेकिन पुरानी पीढ़ी के मन में संदेह था और पुजारी वर्ग में खासा रोष था इस नए धर्म को लेकर क्योकि धर्म की आड़ में खोली गयी उनकी दुकाने बंद करा दी थी अखेनाटेन ने | सामंतों का एक वर्ग ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए षडयंत्र रचने में व्यस्त था |
नेफेर्तिती ने, जो की पुराने धर्म में भी महत्वपूर्ण पद पर विराजमान थी, पति का सहयोग करते हुए नए धर्म की स्थापना और विस्तार के कार्य को अपने हांथों में ले लिया | उसने पति के साथ-साथ पूजा की और मुख्य भगवान एटन के प्रधान पुजारी का असाधारण पद हासिल किया यद्यपि इससे पुजारी वर्ग और नाराज़ हो गया लेकिन अखेनाटेन के दैवीय व्यक्तित्व के आगे किसी की एक न चली |
इस प्रकार से नए धर्म में अखेनाटेन और नेफेर्तिती ने एटन के साथ मिल कर एक ‘ईश्वरीय त्रिशक्ति’ का निर्माण किया जिसमे एटन, अखेनाटेन और नेफेर्तिती के माध्यम से समूचे जनमानस में अपन ईश्वरीय प्रकाश फैला रहे थे | अमर्ना के मंदिरों की दीवारों पर खुदे हुए चित्रों में नेफेर्तिती का कद और आकार उतना ही बड़ा है जितना स्वयं सम्राट अखेनाटेन का उसमे भी एक जगह नेफेर्तिती को अकेले एटन के सामने शत्रु सेना पर अपने वज्र से भीषण प्रहार करते हुए चित्रित किया गया है जो मिस्र के राजवंश में नेफेर्तिती के अपूर्व शक्तिशाली व्यक्तित्व की कथा कहने के लिए पर्याप्त है |
एक जगह पर तो स्वयं अखेनाटेन की ग्रेनाइट पत्थर की बनी हुई समाधि के चारो कोनो पर नेफेर्तिती को समाधि की रक्षा करते हुए देवी के रूप में चित्रित किया गया है | मिस्र में इस तरह के अधिकार केवल वहां की प्रमुख देवियों जैसे आइसिस (Isis), नेफथीस (Nephthys),और सेल्केट (Selket) आदि देवियों को ही था | ऐसे प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी, नेफेर्तिती, अखेनाटेन के शासन के बारहवें वर्ष से अचानक ग़ायब हो जाती है, कोई ज़िक्र नहीं ! नेफेर्तिती की ममी भी अभी तक न मिलने से रहस्य और भी गहराया है |
अलग अलग लोगों ने अलग-अलग तर्क दिए, प्रारम्भिक इतिहासकारों का मानना था कि नेफेर्तिती की मौत प्लेग से हुई लेकिन वर्तमान में हुई खुदाइयों में मिले दस्तावेज़ों ने इस तथ्य को खारिज कर दिया | नेफेर्तिती के गायब होने के कुछ ही समय बाद मिस्र के इतिहास में वर्णन आता है कि अखेनाटेन ने अचानक से मिस्र के राजसिंहासन के लिए एक सह-शासक नियुक्त किया जिसे मिस्र पर शासन का उतना ही अधिकार था जितना स्वयं सम्राट को था, सिवाय एक अधिकार के-उस सह शासक को हटाने का अधिकार |
यह एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ ऐतिहासिक घटना थी लेकिन इस घटना ने उस ‘रहस्यमय’ सह शासक के बारे में अनुमान लगाने के लिए एक मज़बूत आधार प्रदान किया | पुजारियों और सामंतों के निशाने पर आई नेफेर्तिती, अखेनाटेन की कमज़ोर कड़ी बनती जा रही थी | उसको लेकर व्यर्थ के और गलत विवाद फैलाए जा रहे थे | सम्राट के क़त्ल के लिए अलग षडयंत्र चल रहे थे |
ऐसी अत्यंत विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए अखेनाटेन ने पलटवार किया और नेफेर्तिती को मिस्र का सह शासक नियुक्त किया | मिस्र की अनिंद्य सुंदरी नेफेर्तिती, मिस्र के इतिहास से गायब हो चुकी थी और उसकी जगह मिस्र के राजसिंहासन पर एक दूसरा शासक अपने पैर जमा चुका था जिसकी उपस्थिति ही शत्रुओं में भय का वातावरण पैदा कर देती थी | नेफेर्तिती से पहले भी मिस्र में हत्शेप्सुत नाम की शक्तिशाली महिला फराओं, शासन कर चुकी थी | कुछ इतिहास के विद्वानों का मानना है कि अखेनाटेन के इस भौतिक संसार से विदा होने के बाद भी नेफेर्तिती ने मिस्र पर फ़राओं की तरह शासन किया |
नए होने वाले फ़राओ, ‘तूतेनखामेन’ की उम्र अभी कम थी इसके अलावा वह एक गंभीर बीमारी से भी पीड़ित था | तूतेनखामेन, नेफेर्तिती का दामाद था | इसका विवाह नेफेर्तिती और अखेनाटेन की पुत्री अन्ख्सेनामुन से हुआ था | लेकिन शायद नेफेर्तिती को दूसरी दुनिया में जाने की जल्दी थी, वहां कोई उसकी प्रतीक्षा कर रहा था | वह अपनी मृत्यु और उसके बाद के महाप्रयाण के लिए तैयार थी | ऐतिहासिक शिलालेख बताते हैं कि अखेनाटेन की मृत्यु के दो वर्ष बाद तक नेफेर्तिती ने मिस्र के राजसिंहासन पर फराओं की तरह शासन किया उसके बाद नए फ़राओ तूतेनखामेन के हांथो मिस्र की सत्ता सौंप दी, यद्यपि उसकी उम्र अभी कम थी | यद्यपि नेफेर्तिती की ममी का न मिलना अभी तक रहस्य बना हुआ है तथापि मिस्र के पिरामिडो में, विशालकाय भवनों के अवशेषों में जहाँ भी नेफेर्तिती का चित्र बना है, बड़े और प्रभावशाली रूप में ही बना है |
ये तत्कालीन मिस्र के समाज में उसके वर्चस्व को दिखाता है | अपनी मृत्यु के बाद नेफेर्तिती, मिस्र के इतिहास में एक देवी की तरह अमर हो गयी | जहाँ कहीं भी अखेनाटेन का ज़िक्र इतिहास में आता है, पार्श्व में नेफेर्तिती का अक्स ज़रूर उभरता है | अमर्ना के मंदिरों में आज भी अखेनाटेन और नेफेर्तिती की अमर गाथा लिखी हुई है |