इस मंदिर का इतिहास हमें त्रेतायुग में ले जाता है। यहाँ आने पर राम-रावण युद्ध की वह घटना मन में तरोताजा हो जाती है। जब लक्ष्मण जी को युद्ध के दौरान शक्तिबाण लगा था तब पवनसुत हनुमान जी उनकी जान को बचाने के लिए संजीवनी बूटी लेने गए थे।
उस समय वह संजीवनी बूटी की पहचान न कर पाने के कारण पूरे द्रोणांचल पर्वत को ही उठा कर ले जा रहे थे कि पर्वत को उठाने के दौरान उसका एक हिस्सा नीचे जा गिरा और बन गया पूजा का स्थान। यह वह स्थान है जहां आज भी जीवन रक्षक जड़ी बूटियां मिलती हैं।
आज हम बात करने जा रहे हैं उत्तराखंड के द्रोणागिरी मंदिर की, जिसको दूनागिरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। जहां 500 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद देवी माँ के दर्शन होते हैं।
कहाँ स्थित है यह द्रोणागिरी वैष्णवी शक्तिपीठ
भारत का उत्तराखण्ड राज्य जिसे यदि हम हजारों मंदिरों वाला प्रदेश कहें तो गलत न होगा। इसी उत्तराखंड राज्य की एक बहुत पौराणिक और सिद्ध शक्ति पीठ है जो दूनागिरि मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
बड़ा अदभुत है मंदिर जहाँ देवी माँ से जितना माँगो उसका दूना (दोगुना) प्राप्त होता है
यह मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से लगभग 15 किलोमीटर दूर ऊँचे पर्वत पर स्थित है। जहाँ मां दूनागिरी अपने भक्तों पर कृपा बरसा रही है। माता का यह धाम बहुत रमणीय स्थान पर बना हुआ है। जहाँ प्रकृति की अनुपम छटा देखते ही बनती है।
यह किन देवी का मंदिर है
जिन माता को लोग दूना देवी के नाम से जानते हैं वह वास्तव में माँ दुर्गा का ही नाम है। पुराणों में उनको यहां द्रोणा गिरी देवी के नाम से जाना जाता है। क्यों कि यह धाम द्रोणांचल पर्वत पर स्थित है इसीलिए इस मंदिर की देवी को द्रोणागिरी माता कहा जाता है। जिसे लोग क्षेत्रीय भाषा में दूना गिरी माँ के नाम से जानते हैं। इस पर्वत के यहां होने की कहानी बड़ी दिलचस्प और अदभुद है।
राम-रावण युद्ध के दौरान मेघनाथ द्वारा शक्ति बाण चलाने पर जब लक्ष्मण जी मूर्छित होकर धरती पर जा गिरे तब सुषेण वैद्य को लक्ष्मण जी की चिकित्सा के लिए बुलाया गया था। तब उन्होंने यह उपाय बताया था कि यदि द्रोणांचल पर्वत से संजीवनी बूटी लाई जाए तभी लक्ष्मण जी की जान बच सकती है।
तब सर्वशक्तिमान हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने पवन वेग से उड़ान भरकर द्रोणांचल पर्वत जा पहुंचे थे। लेकिन वहाँ पहुंचकर जब संजीवनी बूटी वाले उस पर्वत को उठा कर ले चलने के लिए तैयार हुए तभी उस पर्वत का एक हिस्सा टूट कर नीचे जा गिरा जो बाद में माता की शक्ति पीठ के रूप में अस्तित्व में आया।
किसने बनाया यह मंदिर
इतिहासकार बताते हैं कि यह मंदिर वर्ष 1318 में कत्यूरी शासक सुधार देव ने बनवाया था। कहा जाता है कि राजा सुधार देव माता दुर्गा के परम भक्त थे।
बताया जाता है कि एक बार राजा सुधार देव इस पर्वतीय स्थान से होकर गुजर रहे थे कि उन्हें ही इस जगह पर माँ दुर्गा देवी के होने एवं उनके एक प्राचीन मंदिर के भी होने का आभास हुआ। उस समय एक चकाचौंध करने वाली रौशनी अचानक प्रकट हुई और फिर अंतर्ध्यान हो गई।
राजा सुधार देव उस समय किसी ऐसे स्थान की तलाश कर रहे थे जहाँ वह मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित कर सके। उस अलौकिक रोशनी ने राजा को यह संदेश दिया था कि मां दुर्गा स्वयं इस स्थान पर स्थापित होना चाहती है।
इसके बाद राजा के द्वारा वहां एक माँ दुर्गा के सुंदर मंदिर की स्थापना किया गया। यहां माँ दूना देवी की मूर्ति के अतिरिक्त भगवान शिव एवं माता पार्वती की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
बहुत प्राचीन है मंदिर का इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास वर्ष 1181 से भी अधिक पुराना है। यहां के पत्थरों पर अंकित साक्ष्य यह बताते हैं कि यह वह तपस्थली है जहां गुरु द्रोणाचार्य ने घोर तपस्या कर माँ का वरदान प्राप्त किया था।
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर ही इस पर्वत का नाम द्रोणांचल पर्वत रखा गया। किन्तु यह धारणा संदिग्ध है क्योंकि रामायण काल में भी इसका नाम द्रोणांचल ही था।
यह वह प्राचीन मंदिर है जिसका वर्णन पुराणों में पढ़ने को मिलता है यदि हम स्कंद पुराण के पन्नों को पलटें तो पाएंगे कि द्रोणाचल पर्वत पर स्थित देवी का विस्तार से वर्णन किया गया है।
पुराणों में इस बात का भी उल्लेख है कि पांडवों द्वारा महाभारत के युद्ध में विजय हासिल करने के लिए दूणागिरी धाम के मां की आराधना भी की गई थी। यह वही स्थान है जहाँ पांडवों की सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने विजयी भव का आशीर्वाद दिया था।
द्रोणागिरी माता संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस द्रोणांचल पर्वत स्थित मां दुर्गा के सच्चे स्वरूप का दर्शन करता है उसके हृदय की इच्छा मां अवश्य पूरा करती हैं। यहाँ वर्ष भर भक्तों के आने का सिलसिला जारी रहता है। दुर्गा देवी के इस धाम में आने वाली निसंतान स्त्रियां अपने लिए संतान प्राप्ति का वरदान मांगती है और उनकी यह इच्छा माँ अवश्य पूरा करती हैं।
औषधियों का खजाना है
आज भी अनेक जीवनदायनी एवं रहस्यमयी जड़ी बूटियाँ इस द्रोणाचल पर्वत पर मिलतीं हैं। चिकित्सा की आयुर्वेद शाखा के लिये यह स्थान औषधियों का भंडार हैं। यहाँ पर अनेक शोध कार्य किये जा रहे हैं। विभिन्न आयुर्वेदिक कंपनियों को अनेक रोगों की दवाएँ इसी पर्वत के पेड़-पौधों में मिला करतीं हैं।