सूर्य मंत्र, जो वेदों में आये हैं, उनके जप एवं प्रभाव

सूर्य मंत्रभगवान सूर्य की स्तुति में भक्त प्रातःकाल प्रार्थना करते हुए कहता है कि ‘हे भगवान सूर्य! मैं आपके उस श्रेष्ठ रूप का स्मरण करता हूँ , जिसका मण्डल ऋग्वेद है, तनु यर्जुर्वेद है, किरणें सामवेद हैं तथा जो ब्रह्मा और शंकर का रूप है, जगत की उत्पत्ति , रक्षा और नाश का कारण है तथा अलक्ष्य और अचिन्त्य है।

आप ब्रह्मा , इन्द्रादि देवताओं से स्तुत और पूजित हैं, वृष्टि के कारण एवं अवृष्टि के हेतु , तीनों लोकों के पालन में तत्पर और सत्त्व आदि त्रिगुण रूप धारण करने वाले तथा गौओं के कण्ठ – बंधन को छुड़ाने वाले हैं, ऐसे अनंत शक्ति सम्पन्न आदि देव सविता को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।

भगवान सूर्य नारायण! आप प्रत्यक्ष देव हैं। आप तीनों लोकों तथा चौदहों भुवनों के स्वामी हैं। चारों युगों में आपकी महिमा , गरिमा , प्रताप विश्व विदित है। ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’ वेद वचन से आपकी प्रसिद्धि है अतः आप सम्पूर्ण चराचर की आत्मा हैं।

आप अंधकार का नाश करने वाले, राक्षसों का सर्वनाश करने वाले, दुःखों एवं रोगों से छुटकारा दिलाने वाले, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाले तथा आयु की वृद्धि करने वाले हैं। आप हृदय रोग, क्षय रोग एवं पीलिया आदि रोगों को दूर करने वाले हैं’।

रोगों का नाश करने वाले भगवान सूर्य का ऋग्वेद (1।50।11)  में आये हुए मंत्र की हम हिंदी में इस प्रकार से स्तुति कर सकते हैं-

“हे हितकारी तेज वाले सूर्य देव ! आप आज उदित होते हुए तथा ऊँचे आकाश में जाते समय मेरे हृदय के रोग तथा पाण्डु रोग को नष्ट कीजिये”।

आरोग्य की कामना भगवान सूर्य से करनी चाहिये ‘आरोग्यं भास्करादिच्छेत’ यह मत्स्य पुराण का वचन सर्व विदित है। ‘नमस्कारप्रियो भानुर्जलधाराप्रियः शिवः’ अर्थात भगवान सूर्य नमस्कार प्रिय हैं। भगवान शिव का जलधारा प्रिय होना प्रसिद्ध ही है।

संध्या – गायत्री मंत्र का जाप नित्य किया जाता है। गायत्री मंत्र मूलरूप से सूर्य भगवान की ही उपासना है। माँ गायत्री देवी वेदों की माता हैं, पापनाशिनी हैं। गायत्री सर्व देवमयी एवं सर्व वेदमयी हैं। भगवान सूर्य की उपासना के बहुत से प्रसिद्ध मंत्र हैं।

सूर्य के 12 नाम, 21 नाम, 108 नाम और सहस्र नाम का जप, चाक्षुषोपनिषद का पाठ तथा अष्टाक्षर मंत्र इत्यादि अनेक मंत्र शास्त्रों में प्रसिद्ध हैं। गायत्री मंत्र से संध्या होते समय सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है, लेकिन जो गायत्री से जलार्घ देने के अधिकारी नहीं हैं, वे इस मंत्र से जल दे सकते हैं – ‘सूर्याय नमः , आदित्याय नमः , भास्कराय नमः।’ आदित्य हृदयस्तोत्र का पाठ भी प्रसिद्ध है।

किसी भी प्रकार से भगवान सूर्य की उपासना मनोवांछित फल प्रदान करने वाली, एवं परम कल्याणप्रद है। भगवान राम के आदित्य हृदय स्त्रोत में कहा गया है कि भगवान सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, महेन्द्र, वरूण, काल, यम, सोम आदि अनेक रूपों में प्रतिष्ठित हैं।

इनकी अर्चना – प्रार्थना अवश्य करनी चाहिये , इससे मंगल होता है। भगवान सूर्य उदित होते ही मृतप्राय अचेतन जगत को चेतन बना देते हैं। वे इष्ट की प्राप्ति तथा अनिष्ट की निविृत्ति के उपायों को प्रकाशित करने वाले हैं। ‘आत्मानं वृद्धि’ अपने को ज्ञानी  – यह वेद का आदर्श है। सूर्य की उपासना आत्मा की उपासना है।

देवोपासक की अपेक्षा आत्मोपासक श्रेष्ठ कहा गया है। ( शत0ब्रा0 ) सूर्योपासक ज्योतिष्मान होता है। संध्या में प्रार्थना की जाती है ‘पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्।’

इसमें भगवान सूर्य नारायण से दीर्घ आयु के लिये प्रार्थना की गयी है तथा इन्द्रियों को सत्प्रेरणा देने की प्रार्थना की गयी है। भगवान सूर्य ऊष्मा के भण्डार हैं इसीलिए अगर सूर्य न होते तो सरा जगत ठण्ड से सिकुड़ जाता , चारों ओर बर्फ ही बर्फ हो जाती। अन्न , जल का अभाव हो जाता और प्राणी जीवित रहने में अक्षम हो जाते।

सूर्य निष्काम भाव से कर्म करते हुए स्थावर-जङ्गम सृष्टि का बिना भेदभाव के मित्र के रूप में प्रकाशित एवं पालन – पोषण करते हैं अतः सूर्य से बढ़ कर कोई मित्र नहीं है। देह स्थित हमारी चेतना के विकास का मूल स्रोत अथवा उदगम – स्थान सूर्य मण्डल ही है।

बच्चा जब जन्म लेता है तो उसे सबसे पहले सूर्य दर्शन कराया जाता है ताकि उसके शरीर का ताप नियंत्रित रहे और उसकी बाह्य ज्योति तथा अन्तः ज्योति ठीक रहे जो की हमारी संस्कृति है। सूर्य की उपासना से तेज बल एवं बुद्धि सुरक्षित रहते हैं।

भगवान सूर्य से प्रेरित होकर हमें निष्काम कर्म करते हुए ही जीवनयापन करना चाहिये। मनुष्य का जीवन श्वास पर निर्भर है। इसीलिये संध्या में प्राणायाम का विशेष महत्व है। प्रातः सूर्य रश्मियों से भावित शुद्ध प्राण वायु हमारे तेज – बल की वृद्धि करता है , हमें रोग रहित बनाता है।

इसीलिए प्रातःकाल की सूर्य रश्मियों का सेवन करना चाहिये। इससे इच्छा शक्ति बलवती होती है। हमें भगवान सूर्य के सम्मुख प्रार्थना करनी चाहिये कि ‘हे भगवन! हम आपकी कृपा से स्वास्थ्य एवं शक्ति प्राप्त कर रहे हैं। आपकी कृपा से हम सदा पूर्ण स्वस्थ रहेंगे’।

इससे हमारे हृदय में शुभ शिव संकल्प जागेगा , शुभ तरंगों के प्रभाव से वे वैसा ही बन जाते हैं। जो विचार हम करते हैं, वे ही विचार लौटकर हमारे पास आते हैं। अतः शुभ प्रेरणादायी मंगल विचार ही समाज में वितरित करने चाहिये। शाश्वत नियम है कि जैसा बीज हम बोते हैं, वैसा ही फल हम पाते हैं। अन्तर के शुभ विचार हमें जाग्रत एवं चैतन्य बना देंगे। हमें सत, चित, आनंद का अनुभव होगा।

वर्तमान को सुधारेंगे तो लोक में सुयश और परलोक में सदगति की प्राप्ति होगी और हमारा आचरण दिव्य बनेगा। हमारा संकल्प दृढ़ होगा। भगवान सूर्य नारायण! आप नित्य अवतरित होकर अमृत का दान देने वाले हैं। आपको कोटि कोटि नमस्कार है , प्रणाम है , प्रार्थना है’ ‘असतो मा सद् गमय।’ ‘तमसो ’ मा ज्योतिर्गमय।’ ‘ मृत्योर्मा अमृत गमय’ ।

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