कभी आपने इस बात पर विचार किया है कि हमें अपने घर के कुछ खास स्थानों पर ही बैठना क्यों अच्छा लगता है ? जबकि उस स्थान की तुलना में अन्य स्थानों पर हम और हमारे परिवार के लोग बहुत कम जाते हैं। इसी तरह ऐसा क्यों होता है कि हमें अपनी कॉलोनी अथवा मोहल्ले के कुछ घरों में ही आना-जाना अच्छा लगता है जबकि हम कुछ घरों में जाना पसंद नहीं करते।
इन दोनों सवालों का जवाब इस प्रकार से है़। पहले प्रथम प्रश्न का उत्तर यह है कि हम घर के कुछ ऐसे स्थानों पर अन्य स्थानों की तुलना में इसलिए अधिक बैठते हैं क्योंकि वह स्थान जाने या अनजाने में वास्तु शास्त्र के अनुसार बनाया गया होता है। इसलिए वहाँ सकारात्मक उर्जा का वास होता है। जो हमें प्रसन्नता प्रदान करता है।
इसी तरह दूसरे प्रश्न का उत्तर यह है कि हम अपने आस-पास कुछ उन घरों में जाना अधिक इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि अन्य बातों के अलावा वह घर वास्तु शास्त्र के अनुसार बने होते हैं जिसके कारण वहाँ जाने वाले को सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है। जबकि अन्य घरों में उस ऊर्जा का अभाव रहता है।
इसलिए हम उन घरों में जाना पसंद नहीं करते। हम मंदिर, और गुरुद्वारे अथवा किसी अन्य पूजा स्थल में भी बार-बार जाते है इसीलिए क्योंकि वहां पर हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि घर एक मंदिर है़। इसलिए इस मंदिर को भी इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि जहाँ सैदेव सकारात्मक ऊर्जा का वास हो। इसके लिए हमें निश्चित रूप से वास्तु शास्त्र के शरण में जाना होगा।
जो हमें ये निर्देश देता है कि हम अपने घर का निर्माण कहाँ और किस तरह करें कि वो हमारे लिए लाभकारी हो। जिससे अधिक से अधिक सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हो और वह हमें खुशहाली और समृद्धि प्रदान करें। वास्तु के अनुसार घर बनाने के संबंध में वास्तु विशेषज्ञ डॉ.अर्चना का कहना है कि वास्तु शास्त्र के अनुसार बना हुआ घर वह तरीका हैं जो हमारे घरों में एक अदभुत शक्ति उत्पन्न करता है। जिसे हम पॉजिटिव एनर्जी कहते हैं। जो हमें यश, समृधि और सुख- शांति की ओर ले जाता है।
घर का मुख्य द्वार और वास्तु
किसी भी घर का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह वह मुख्य मार्ग है अथवा यही वह रास्ता है़ जहाँ से हमारे घर में दैवीय शक्तियों का आगमन होता है़। साथ ही जहाँ से हम और हमारे मेहमानों के साथ पॉजिटिव एनर्जी अथवा नेगेटिव एनर्जी दोनों का आवागमन होता रहता है। इसलिए हमारे मुख्य द्वार का निर्माण वास्तु के परामर्श के अनुसार ही होना चाहिए ताकि मुख्य द्वार से केवल सकारात्मक उर्जा ही हमारे घर में प्रवेश करें नकारात्मक नहीं।
ऐसा मान कर चलिए कि यदि हमने अपने घर का मुख्य द्वार वास्तु के अनुसार बना लिया तो समझ लीजिये कि घर में 90% सकारात्मक प्रभाव का मार्ग खोल दिया। जहाँ तक किसी भी मकान के मुख्य द्वार की दिशा का प्रश्न है तो इस संबंध में वास्तुशास्त्र का यही कहना है कि यदि हमारे घर का मुख्य द्वार उत्तर पूर्व दिशा में हो तो सर्वोत्तम है। इसके अतिरिक्त घर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा और पूर्व दिशा दोनों ही में बनाना अच्छा माना जाता है।
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क्योंकि यहाँ इन दोनों दिशा का अपना महत्व है। उत्तर दिशा जहां दैवीय प्रभाव वाली दिशा है। वहीं पूर्व दिशा वह दिशा है जहाँ स्वयं भगवान सूर्य देव प्रातः काल ही सामने से दर्शन देते हैं और पूरे घर को सकारात्मकता की रौशनी से भर देते हैं। मकर राशि के व्यक्तियों के लिए पश्चिम दिशा भी ठीक मानी जाती है। लेकिन वास्तु शास्त्र दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार को बनाना अच्छा नहीं मानता है।
वास्तु शास्त्र का कहना है कि दक्षिण की दिशा नकारात्मकता का क्षेत्र है अतः इस दिशा में बनाया गया मुख्य द्वार अमंगल उत्पन्न करता है। वास्तु शास्त्र मुख्य द्वार को सदैव अंदर की ओर खोला जाना अच्छा मानता है। घर का मुख्य द्वार मकान के बीचो बीच में न होकर एक तरफ होना चाहिए।
घर के अन्य द्वार और वास्तु
घर के मुख्य द्वार के अतिरिक्त घर के अन्य दरवाज़ों का उत्तर दिशा में होना सबसे अधिक अच्छा माना जाता है। वास्तु शास्त्र इस दिशा में यह निर्देश देता है कि घर के तीन दरवाजे एक सीध में नहीं होने चाहिए। यदि ऐसा है तो सर्वथा अनुचित है। अतः इसमें सुधार कर लेना चाहिए। घर के सभी दरवाजों में खुलने और बंद होने के समय कोई अवरोध नहीं होना चाहिए।
उन दरवाजों से कोई आवाज नहीं आनी चाहिए। क्योंकि घर के दरवाजों से निकलने वाली आवाज नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती है। आजकल फैशन के दौर में दरवाजे एक पल्ले वाले बनवाए जा रहे हैं। लेकिन वास्तु शास्त्र घर के दरवाजों को दो पल्लों वाला ही अच्छा मानता है। घर के दरवाजे बहुत अधिक डार्क कलर में पेंट नहीं कराये जाने चाहिए।
घर की खिड़कियाँ और वास्तु
वास्तु शास्त्र घर की खिड़कियाँ पूर्व, उत्तर और पश्चिम दिशा में बनाया जाना अच्छा मानता है। वास्तुशास्त्र का यह भी कहना है की घर की खिड़कियाँ यदि विषम संख्या में हों तो बेहतर है़। लेकिन दक्षिण दिशा में खिड़कियाँ बनाने से बचना चाहिए। क्योंकि इसे यमराज की दिशा मानी जाती है। वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार से लगी हुई खिड़की को अच्छा नहीं मानी जाता है। ये खिड़कियाँ हमारे घरों में हवा ही नहीं बल्कि सकारात्मक ऊर्जा भी लाती हैं।
इसलिए घर की खिड़कियाँ उस दिशा में होनी चाहिए जहाँ से सूर्य का प्रकाश हमारे घर को प्रकाशित कर सकें। यदि घर की खिड़कियां ब्रह्म मुहूर्त में खोल दें तो यह हमें ऊर्जावान बनाती हैं।
ड्राइंग रूम और वास्तु
घर का ड्राइंग रूम वह स्थान है जो हमारे घर का प्रमुख आकर्षण का केंद्र होता है। यह वह स्थान है जहाँ हम अपने परिवार के साथ प्रसन्नता के क्षण बिताते हैं। साथ ही घर में आने वाले अतिथि गण भी इस स्थान की शोभा बढ़ाते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का ड्राइंग रूम वायव्य कोण (उत्तर पश्चिम) अथवा उत्तर दिशा या ईशान कोण के बीच हो तो अच्छा है। जहाँ तक ड्राइंग रूम के आकार का प्रश्न है तो ड्राइंग रूम का आकार सदैव वर्गाकार या आयताकार ही होना चाहिए।
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इसके अतिरिक्त फैशन के चलते अन्य कोई आकार बनाना सर्वथा अनुचित है। गोलाकार या अंडाकार आकृति और आकार का ड्राइंग रूम बनाना वास्तु दोष उत्पन्न करता है। ड्राइंग रूम के दरवाजों की दिशा ईशान या उत्तर में अच्छी मानी जाती है। साथ ही यदि ड्राइंग रूम की खिड़कियाँ पूर्व अथवा उत्तर में खुले तो सर्वोत्तम है। ड्राइंग रूम की दीवारों लिए वास्तु शास्त्र हल्के रंग की पेंटिंग करने का परामर्श देता है।
किचेन और वास्तु
घर का रसोई घर यदि वास्तु के अनुसार हो तो घर के लोगों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। साथ ही घर में अन्न और धन की कभी कमी नहीं होती है। वहाँ पकाई जाने वाली वस्तु खाने वालों में ऊर्जा उत्पन्न करती है और रसोई घर में पकाई जाने वाली कोई खाद्य सामग्री बेकार नहीं जाती। वास्तु घर की रसोई को अग्नि कोण अर्थात दक्षिण पूर्व में बनाना सर्वोत्तम मानता है।
रसोई घर की दीवारों पर किया जाने वाला कलर यदि ऑरेंज या रेड हो तो सर्वोत्तम है़। किचेन की दीवार पर लगाया जाने वाला फलों व सब्जियों का चित्र सकारात्मक प्रभाव डालता है।
घर का आंगन और वास्तु
वास्तु शास्त्र का ऐसा मानना है कि जिन घरों में आंगन नहीं होता है वे पूर्ण नहीं माने जाते हैं। इसीलिए वास्तु शास्त्र का यही परामर्श है कि किसी भी घर में छोटा या बड़ा आंगन अवश्य होना चाहिए। आंगन में ऊपर से आने वाली प्राकृतिक रौशनी हमारे घर में सौभाग्य की वर्षा करती है। घर के आंगन में यदि थोड़ी जमीन कच्ची छोड़ दिया जाये तो उत्तम है। उस कच्चे स्थान पर तुलसी , पपीता, आंवला आदि का पौधा लगाया जाना चाहिए।
यह हरे-भरे पौधे हमारे घर में खुशहाली भर देते हैं। जब परिवार के सभी सदस्य एक साथ आंगन की प्राकृतिक रोशनी में बैठते हैं और हंसते – खिलखिलाते हैं तो पूरे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है।
घर की सीढ़ियाँ और वास्तु
किसी भी मकान के ऊपरी हिस्से में जाने के लिए बनाई जाने वाली सीढ़ियाँ बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। यह सीढ़ियां अगर वास्तु के अनुसार बनी हों तो यह हमारे सौभाग्य को भी ऊंचाइयों तक ले जाती हैं। वास्तु शास्त्र कहता है कि हमारे घर की सीढ़ियाँ सदैव नैऋत्य दिशा अर्थात दक्षिण पश्चिम मैं बनाई जानी चाहिए। घर की सीढ़ियों के आरंभ एवं अंत में द्वार का होना अच्छा माना जाता है। घर की सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए।
यह संख्या 7, 11, 17, 21 की संख्या हो सकती है। लेकिन इन सब में 17 की संख्या सबसे अच्छी मानी जाती है। घर की सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, बाथरूम, लैट्रिन आदि नहीं बनाना चाहिए। न ही सीढ़ियों के नीचे जूता- चप्पल कबाड़ा आदि जमा करना चाहिए। ऐसा करना नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। बल्कि सीढ़ियों के नीचे सुगंधित पुष्पों के पौधों के पार्ट्स रखकर हम घर की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं।
घर का शयनकक्ष और वास्तु
घर का शयनकक्ष वह आरामदायक स्थान है जहाँ हम दिन भर की थकान के बाद आराम कर अपने आपको तरोताजा महसूस करते हैं। वास्तु शास्त्र घर के शयन कक्ष को नैऋत्य अर्थात दक्षिण पश्चिम में बनाना अच्छा मानता है। इसके अतिरिक्त शयन कक्ष के लिए उत्तर पश्चिम यानि वायव्य दिशा को भी अच्छा माना जाता है। शयन कक्ष की दीवारों के लिए आसमानी, हल्का पीला , हल्का हरा , हल्के गुलाबी या किसी भी हल्के रंग को अच्छा माना जाता है।
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शयन कक्ष में कोई घड़ी आदि नहीं लगाई जानी चाहिए। क्योंकि यह घड़ी रात्रि में नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती है़ और हमें चैन की नींद नहीं सोने देती। इसके अलावा शयनकक्ष में आईना का होना अच्छा नहीं माना जाता है। यदि है तो उसे रात्रि के समय ढक दें।
स्टडी रूम और वास्तु
अध्ययन कक्ष घर के बच्चों का उन्नति क्षेत्र है। जहां माँ सरस्वती एवं गणपति जी की कृपा अवश्य होनी चाहिए। इसीलिए स्टडी रूम को पूजा घर से निकट बनाना अच्छा माना जाता है। वास्तु शास्त्र में स्टडी रूम को उत्तर पूर्व अथवा उत्तर या पूर्व दिशा में होना अच्छा माना जाता है। स्टडी के समय में पढ़ाई करने वाले बच्चे का मुख पूर्व या उत्तर की दिशा में होना चाहिए। स्टडी रूम की दीवारों का रंग पीला या बैगनी रंग अच्छा माना गया है।
स्टडी रूम में बहुत सारी तस्वीरें नहीं लगी होनी चाहिए। यह मन में भटकाव पैदा करती हैं। स्टडी रूम में बच्चों की मेज पर एक टेबल लैंप अवश्य रखें। इससे एकाग्रता बढ़ती है। स्टडी रूम में रखा जाने वाला फर्नीचर बहुत अधिक न होकर आवश्यकतानुसार ही होना चाहिए। स्टडी रूम में किसी प्रेरणादायक व्यक्ति की तस्वीर लगा सकते हैं। इसके अतिरिक्त कोई प्रेरणादायक स्लोगन भी लिखा जा सकता है।
पूजा घर और वास्तु
घर का पूजा घर एक बहुत प्रभावशाली स्थान है। यह वह पवित्र स्थान है़। जिसकी सकारात्मक ऊर्जा पूरे घर में फैलती है। इसलिए पूजा घर को घर के ईशान कोण अथवा उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए। यह दिशा वह मंगलकारी दिशा है जहाँ दैवीय शक्ति निवास करती है।
घर के पूजा घर की दीवारों का रंग सफेद अथवा हल्का केसरिया अच्छा माना जाता है। पूजा घर की मूर्तियां 7 इंच से बड़ी नहीं होनी चाहिए। आपके पूजा घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश जी की मूर्ति, दो शंख, तीन देवी की मूर्तियाँ नहीं होनी चाहिए। पूजा घर में नित्य प्रातः ॐ की ध्वनि बजाकर आप पूरे घर को पावन कर सकते हैं।