मंदिरों में भक्तगण अपने-अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हर प्रकार के उपाय करते हैं। वे उन्हें भेंट स्वरूप तरह-तरह की चीजें चढ़ाते हैं। भारत के विभिन्न मंदिरों में दर्शन के लिए आने वाले भक्तगण उस मंदिर की परंपराओं के अनुसार भी भगवान का अभिनंदन करते हैं और उन्हें वहीं की मान्यताओं के अनुरूप भेंटें अर्पित करते हैं।
किसी मंदिर में भगवान के भोग के लिए दूध चढ़ाया जाता है तो कहीं दही, कहीं खोये की बर्फी चढ़ाई जाती है तो कहीं गुलाब जामुन। कुछ भक्त तो खाने की उस वस्तु मंदिर में अर्पित करते हैं जो उन्हें स्वयं सबसे अधिक पसंद होती है।इसलिए भारत में कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जहाँ लोगों द्वारा गोलगप्पे और दही बड़े भी चढ़ाये जाते हैं।
अद्भुत मंदिर के इसी क्रम में भारत में एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ दर्शन के लिये आये भक्तगण अपने साथ मोटी-मोटी रोटियाँ लाते हैं। क्योंकि वे वहाँ उस मंदिर में रोटियाँ ही चढ़ाया करते हैं। उनका यह मानना है कि गेहूं की रोटियाँ चढ़ाये जाने से उस मंदिर के बाबा प्रसन्न होंगे और उनकी मनोकामना पूर्ण करेंगे। आइये जानते हैं कि यह अनोखा मंदिर कहाँ है?
ये मंदिर कहाँ पर है
यहाँ भक्तगण मंदिर में चढ़ाने के लिए लड्डू-पेड़े नहीं बल्कि अपने हाथों की बनी रोटियां लेकर आते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह मंदिर किसी भगवान का नहीं बल्कि यह एक भक्त का मंदिर है़। जिनकी सच्ची भक्ति के आगे भगवान भी झुक गये। यह अद्भुत मंदिर सिद्ध पीठ पूर्णागिरी मंदिर के निकट शारदा नदी के उस पार नेपाल देश में महेंद्र नगर नामक स्थान पर स्थित है।
इस मंदिर को सिद्ध बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। नेपाल देश के महेंद्र नगर में स्थित इस मंदिर के सिद्ध बाबा की कहानी बड़ी अद्भुत है। यह कहानी है एक भक्त और भगवान की। इस कहानी में भक्त सिद्ध नाथ बाबा हैं और भगवान माँ पूर्णागिरी देवी हैं। बाबा सिद्ध नाथ माता पूर्णागिरी के परम भक्त थे। बाबा, माँ के 5500 फिट ऊँचे शिखर पर स्थित दरबार में नित्य शीश झुकाने जाते थे।
माता पूर्णागिरी के धाम में पहुँचने के लिये बाबा सिद्ध नाथ दुर्गम पहाड़ियों को पार करते हुये हर दिन उनके दरबार में आशीर्वाद लेने अवश्य जाते थे क्योंकि सिद्ध बाबा को माँ पूर्णागिरि के प्रति अपार श्रध्दा थी। ऐसा कोई भी दिन नहीं जाता था कि जिस दिन सिद्ध बाबा मां पूर्णागिरी के दर्शन के लिए न पहुँचे। वे माँ के दर्शन किये बिना भोजन नहीं करते थे।
एक दिन की बात है कि सिद्ध बाबा माता पूर्णागिरी के दर्शन के लिए दुर्गम पहाड़ियों की चढ़ाई कर रहे थे कि अचानक तेज वर्षा होने लगी। बाबा उस बारिश में बुरी तरह भीग गये। बारिश रुकने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपने कपड़े सुखाये और फिर माँ पूर्णागिरी के दर्शन के लिए चल पड़े। चलते-चलते रात हो गई थी।माँ पूर्णागिरि शयन के लिए चली गई थी। बाबा सिद्धनाथ उनके दरबार में पहुँचकर मां… मां ..की रट लगाने लगे।
वह उन्हें बार-बार दर्शन देने के लिए आवाज देने लगे। इतनी रात के समय पुकारे जाने के कारण माँ पूर्णागिरि बहुत क्रोधित हो गई और उन्होनें दरबार में बाहर खड़े सिद्ध बाबा को हवा में उछाल दिया। वह ऊँचे शिखर से नीचे जा गिरे लेकिन बाद में जब माँ पूर्णागिरि को यह पता लगा कि उनके परम भक्त सिद्ध बाबा उनके दर्शन में आये थे और वही रात में उनको आवाज दे रहे थे।
तब उन्हें अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ। उसी समय माँ पूर्णागिरी ने सिद्ध बाबा को वरदान दिया कि मेरे मंदिर में आने वाले भक्त मेरे दर्शन के पश्चात जब तक बाबा सिद्ध नाथ के दर्शन नहीं कर लेंगे तब तक उनकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जायेगी। ऊँचे शिखर से जहाँ धरती पर सिद्ध बाबा का शरीर गिरा था, वहीं उनका मंदिर स्थापित किया गया हैं।
माँ पूर्णागिरी के द्वारा मिले वरदान के कारण अब जब भी कोई भी भक्त माता पूर्णागिरी के धाम आता है तो यहाँ दर्शन करने के पश्चात तो बाबा सिद्ध नाथ को शीश झुकाने नेपाल अवश्य जाता है क्यों कि तभी उनकी सिद्ध पीठ यात्रा पूरी मानी जाती है। यही वह सिद्ध नाथ मंदिर है जहाँ के बाबा को रोटियाँ चढ़ायीं जाती हैं। कुमाऊं क्षेत्र के लोग बाबा सिद्धनाथ को चढ़ाने के लिए अपने हाथ की बनी रोटियाँ लाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जिस व्यक्ति को अपनी मनोकामना पूर्ण करानी है़। रोटी उसी के हाथ की बनी होनी चाहिये। कूछ लोग वहीं बाबा के दरबार के आस-पास ही लकड़ियों का चूल्हा जलाकर ताजी-ताजी रोटियाँ सेंकते हैं और वे बाबा सिद्ध नाथ के मंदिर में अपने हाथों से बनीं गर्मागर्म रोटियाँ बाबा को चढ़ाते हैं। बाद में उन्हीं रोटियों को प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं। बाबा का यह मंदिर बहुत प्रतापी है।
दूर-दूर से भक्तगण दर्शन के लिये आते हैं। कहा जाता है कि यहाँ आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है क्योंकि इस मंदिर में आने वाले हर भक्त के मन की कामना बाबा सिद्ध नाथ माँ पूर्णागिरी तक पहुँचाते हैं। नेपाल में स्थापित बाबा का यह सिद्ध नाथ मंदिर बहुत रमणीय स्थान पर बना हुआ है़।
उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ नेपाल के महेंद्र नगर में स्थित मंदिर का यह स्थान नेपाली संस्कृति को संजोये हुये है। इस स्थान पर दूर-दूर तक फैलीं हुईं खाने-पीने या अन्य वस्तुओं की दुकानों की विशेष बात है़ कि इन दूकानों को चलाने वालीं अधिकतर नेपाली महिलायें ही हैं।