कुछ लोगों का कहना है कि उस खौफनाक घाटी में प्रकृति का कहर पंछियों पर मौत बनकर टूट पड़ता है। सचमुच में यह स्थान पक्षियों के लिए अभिशाप है या ऐसा लगता है़ कि इस स्थान पर किसी भूत या प्रेत का साया है जो पक्षियों की गर्दन मरोड़ देता है। बात कुछ भी हो लेकिन यह डरावना सच है। यदि इस घाटी को हम पक्षियों के लिए मौत की घाटी कहें है तो गलत न होगा।
इस घाटी में पक्षियों के आते ही उन पर मौत का साया मंडराने लगता है। यहाँ इस स्थान पर पक्षियों की मौत का कोई वैज्ञानिक कारण हो या और कुछ, लेकिन ये जो कुछ भी, अभी तक अनसुलझा है।
कुछ लोग तो कहते हैं इस घाटी में पक्षी खुद आत्महत्या करने आते हैं क्योंकि उन्हें पंछी योनि से मुक्ति पाना होता है। इसीलिए तो पक्षी यहां कर मौत को गले लगा लेते हैं ताकि इस जगह मौत के पश्चात उनको कोई ऊंची योनि प्राप्त हो।
शायद इसी चाहत में हजारों की संख्या में पंछी यहाँ आकर दम तोड़ देते हैं। यह सभी अटकलें हैं। यहाँ पंछियों की मौत के पीछे वास्तविकता क्या है़? यह अनहोनी क्यों होती है़? इस रहस्य का भेद आज कोई जान न सका है़।
पक्षियों को दर्दनाक मौत देने वाली यह मौत की घाटी कहाँ है और यहाँ बहुत सी संख्या में पक्षी क्यों जान दे देते हैं? आइए उस सच को ढूंढने का प्रयास करते हैं।
कहाँ है यह मौत की घाटी
भारत के असम राज्य में गुवाहाटी से लगभग 300 किलोमीटर दूर यह स्थान जतिंगा घाटी के नाम से जाना जाता है। देखने में तो यह घाटी अति सुंदर है जहाँ दूर-दूर तक नारंगी के बाग पर्यटकों को अपनी ओर लुभाते हैं।
लेकिन उत्तरी कछार की पहाड़ी में स्थित इस खूबसूरत घाटी का बदसूरत सच रूह को कंपा देने वाला है। यहाँ बारिश के दिनों में इस स्थान पर आने वाले लोगों को जतिंगा घाटी में दूर-दूर तक पक्षियों का, झुंड का झुंड मृत अवस्था में पड़ा हुआ नजर आता हैं।
देखने में ऐसा लगता है की किसी शिकारी ने इतने सारे पक्षियों को अपनी बंदूक का निशाना बना दिया हो। जिसके कारण एक साथ इतने सारे पक्षी घायल होकर मर गए हैं।
जो भी व्यक्ति इस दर्दनाक दृश्य को देखने आता है उसके आंसू निकल आते हैं। वह बस यही सोचता है यह किस की बुरी नजर है जो मासूम पक्षियों पर कहर बनकर टूट पड़ती है। जिसके कारण उनकी यह हालत हो जाती है।
वैज्ञानिक जतिंगा घाटी में भारी संख्या में मरने वाले पक्षियों का कारण यह बताते हैं कि इस स्थान पर मानसूनी मौसम में लगातार तेज वर्षा होती है। जिसके साथ ही चारों तरफ गहरा कोहरा छा जाता है।
ऐसा नम भरा मौसम महीनों चलता रहता है। लगातार चलने वाली भारी वर्षा के कारण यहाँ आने वाले पक्षियों के पंख पूरी तरह पानी से भीग जाते हैं। जब भी अपने वह भीगे पंखों से उड़ने का प्रयास करते हैं तो चारों तरफ गहरी धुंघ होने के कारण इस क्षेत्र में उगने वाले बांस के ऊंचे-ऊंचे कंटीले जंगलों में उलझकर घायल हो जाते हैं।
इस प्रकार वर्षा काल में जतिंगा घाटी की तेज बारिश में भीगे पक्षियों द्वारा बार-बार उड़ने के प्रयास करने पर वह बार-बार कंटीले बांसों टकराकर लहूलुहान हो जाते हैं और दम तोड़ देते हैं।
कुल मिलाकर वैज्ञानिक यही अनुमान लगाते हैं कि बारिश के दिनों में पक्षियों के लिए यहाँ का प्रतिकूल मौसम और कंटीले बांस के ऊँचे-ऊँचे पेड़ यहां पक्षियों की मौत के लिए जिम्मेदार है। कुछ लोगों का कहना है कि यहाँ पर देश-विदेश से आने वाली पक्षियों का एकमात्र उद्देश्य आत्महत्या करना ही होता है।
इस घाटी में पक्षियों द्वारा आत्महत्या करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है़ कि यहाँ इस जतिंगा घाटी में पक्षियों द्वारा आत्महत्या करने से वह पक्षी योनि से मुक्ति पा जाते हैं और मनुष्य योनि में प्रवेश कर जाते हैं।
असम की जतिंगा घाटी में अमावस की काली रात यहाँ के पक्षियों पर मौत का कहर बनकर टूट पड़ती है। क्योंकि अमावस्या की भयानक काली रात में पक्षियों के मरने की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। जिसके कारण कुछ लोगों का कहना है कि जतिंगा घाटी वह स्थान है जहाँ भूत-प्रेत का साया है जो पक्षियों को मौत के घाट उतार देता है।
इस घाटी में मौत का मंजर दिन ढलने के बाद शुरू होता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मानसून के मौसम में यहाँ आने वाले कोई भी पक्षी वापस जिंदा नहीं लौट पाते। फिर सभी के मन में यह सवाल उठता है कि यह जगह पक्षियों के लिए सुरक्षित जगह न होने के बाद भी ऐसा क्या आकर्षक है इस जतिंगा घाटी में, जहां बहुत संख्या में पक्षी हर वर्ष आते हैं।
ऐसी कौन सी रहस्यमय सम्मोहन शक्ति है़ जो पंछियों को अपनी ओर खींचती है़। यह बात रहस्य के परतों में छिपी हुई है। जिसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है़।
इस जतिंगा घाटी की अनोखी बात यह है़ कि यहाँ पक्षी झुंड के झुंड एक साथ मरते हैं। जैसे की उन्होंने साथ-साथ मरने की कसम खाई हो। लोग इस अदभुत घटना को सुनकर हैरान रह जाते हैं।
बहुत से लोगों ने पंछियों के मरने के इस खौफनाक मंजर के हकीकत को जानने के लिए इस डरावनी घटना के सच को देखने का प्रयास किया। लेकिन वे भी पक्षियों के मौत के स्पष्ट कारण को समझ न सके। उनके हाथ कोई सफलता नहीं लगी। उनके हाथ लगी केवल मायूसी क्योंकि कोई भी इस मौत की घाटी में पक्षियों की मौत की घटनाओं को नहीं रोक सका।