महिषासुर वह राक्षस था जिसे ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता या दानव नहीं मार सकता है़। असुरों के राजा महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान तो दे दिया था। लेकिन बाद में यही महिषासुर देवताओं के लिए समस्या का कारण बन गया। वह देवताओं को सताने लगा। तब देवताओं ने अमरता का वरदान पाने वाले महिषासुर का संहार करने के लिए जो रास्ता निकाला वह बहुत अदभुत था।
आज आप उस कहानी को जानेंगे जिसमें देवताओं ने एक असुर को मारने के लिए सृष्टि में एक शक्तिशाली देवी को चमत्कारिक तरीके से उत्पन्न कर डाला। उस अदभुत देवी ने अमर हो चुके महिषासुर नामक राक्षस का वध किस प्रकार किया ,यह पूरी कथा हर किसी को चकित कर देने वाली है़।
हमारी संस्कृति की पौराणिक कथाओं में जहां देवताओं का वर्णन है वही असुरों की भी पर्याप्त चर्चा की गई है। उस समय के दानवों में एक दानव था महिषासुर, जो राक्षसों का राजा था। महिषासुर का भगवान की भक्ति करने में कोई जोड़ नहीं था। एक बार तो महिषासुर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए हिमालय के बर्फीले जल में खड़े होकर तपस्या करने लगा। कंपकंपाती हुई ठंड में अत्यंत शीतल जल खड़े होने के कारण महिषासुर का रक्त जम गया।
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लेकिन अपने जीवन की परवाह किये बिना महिषासुर बर्फ के समान जमा देने जल में वर्षो खड़ा रहा। कहते हैं कि महिषासुर का शरीर बर्फ से पूरी तरह ढक गया था उस अत्यंत शीतल जल में। उसके पूरे शरीर को बर्फ की तरह जमा दिया था ठण्ड ने । लेकिन एक तपस्वी की भांति महिषासुर, ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए जप-तप करता रहा। अंततः ब्रह्मा जी महिषासुर की तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हो गए। वे महिषासुर के समक्ष प्रकट हो गए।
उन्होंने महिषासुर से कहा कि हे भक्त, मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हूं। माँगो मुझसे क्या वरदान मांगते हो? महिषासुर ने ब्रह्मा जी से कहा “हे भगवन, पहले हमें वचन दीजिए कि आप हमारी इच्छा को अवश्य पूर्ण करेंगे।” ब्रह्मा जी ने महिषासुर को वचन दिया कि “हे महिषासुर मैं तुम्हारे प्रेम भाव से अत्यधिक प्रभावित हूँ। इसलिए तुम जो कुछ भी मांगोगे। वह तुम्हें अवश्य दूंगा।”
महिषासुर ने कहा कि प्रभु यदि आप मुझसे प्रसन्न ही हैं तो मुझे अमरता का वरदान दीजिए। मुझको यह वर दीजिए कि कोई दानव या देवता मुझे मार न सके। महिषासुर की यह विचित्र इच्छा सुनकर ब्रह्मा जी आश्चर्यचकित रह गये और साथ ही चिंतित भी हो उठे।
लेकिन अब वह अपने महिषासुर को दिये वचन से कैसे पीछे हट सकते थे। इसलिए ब्रह्मा जी ने महिषासुर को ‘तथास्तु’ कह दिया। अब महिषासुर सदा के लिए अमर हो चुका था। अब महिषासुर को न कोई दानव मार सकता था न कोई देवता ।
अब महिषासुर निरंकुश हो चुका था। अब वह कभी देवलोक में विचरण करता तो कभी असुरलोक में। अब महिषासुर अपनी मनमानी करने लगा था। वह देवलोक में देवताओं को सताने लगा था। लेकिन ब्रह्मा के वरदान के कारण अब कोई उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता था। क्योंकि उसे अमरता का वरदान जो मिल गया था। ऐसी स्थिति में न कोई देवता उसे मार सकते थे न ही दानव।
अब महिषासुर देवलोक में किसी भी देवता के निवास में प्रवेश कर जाता और उन्हें उठाकर गेंद की भांति हवा में उछाल देता। भैंस जैसे मस्तिष्क वाले होने के कारण वह देवताओं से जानवरों की तरह व्यवहार करने लगा था। स्वर्ग लोक में महिषासुर का उत्पात बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन अचानक उसने देवराज इंद्र से युद्ध करना आरंभ कर दिया और अपने आसुरी बल के कारण इंद्रदेव को भी पराजित कर दिया।
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इसके बाद तो महिषासुर ने स्वर्ग लोक को अपने नियंत्रण में ले लिया। अब महिषासुर सिंहासन पर बैठ कर देवताओं को ही आदेश देने लगा। सभी देवता गण महिषासुर के अत्याचारों से तंग आ गए थे। इसलिए वे सभी दौड़े -दौड़े भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी के पास पहुँचे। लेकिन उन सबके पास भी ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त होने के कारण महिषासुर को मारने का कोई उपाय नहीं था ।
तब तीनों देवताओं ने मिलकर यह निर्णय लिया कि वह महिषासुर के संहार के लिए इस सृष्टि में एक देवी शक्ति का उदय करेंगे। वही इस असुर का विनाश कर उसे उसके पापों का दंड देंगी। यह सोच कर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं ने मिलकर दुर्गा जी को अस्तित्व में लाये। कहा जाता है कि महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच 10 दिन तक युध्द चला।
उस मायावी महिषासुर को अमरता का वरदान प्राप्त था इसीलिए उसका वध करना आसान नहीं था। फिर देवी दुर्गा ने विचार कि किया ब्रह्मा जी ने महिषासुर को यह वरदान दिया था कि कोई देवता या दानव उसे नहीं मार सकता। लेकिन यह तो नहीं कहा था कि कोई जानवर उसे नहीं मार सकता। सर्वविदित है की माँ दुर्गा की सवारी सिंह है। अर्थात जब माँ दुर्गा बहुत क्रोधित अवस्था में होती है तो सिंह यानी शेर की सवारी करती हैं ।
महिषासुर के पापों का दंड देने के लिए माँ दुर्गा सिंह पर सवार होकर प्रकट हुईं। इसके बाद उन्होंने अपनी सवारी सिंह को यह आदेश दिया कि इस महिषासुर राक्षस को चीर-फाड़ कर खा जाये। माँ का आदेश पाते ही उनकी सवारी सिंह ने अपने विशाल पंजे से महिषासुर पर झपट्टा मारा और एक ही पंजे के वार से महिषासुर को अपना शिकार बना लिया।
परिणामतः महासिंह के पंजो से घायल हुए महिषासुर ने, पैंतरा बदलते हुए, जैसे ही अपना रूप बदलने की कोशिश की, माँ दुर्गा ने उसी समय अपनी दिव्य शक्ति से महिषासुर का वध कर दिया। इस तरह महिषासुर मारा गया। माँ दुर्गा के चरणों में दैत्य महिषासुर का रक्त रंजित सर और धड़, अलग-अलग धरती पर पड़ा था। उसे उसके बुरे कर्मों का दंड प्राप्त हो गया था ।