दो साल पहले की घटना है। मैं ओर मेरा ममेरा भाई देवेश राजस्थान के भानगढ़ का किला घूमने आये थे। हम लोगों ने भानगढ़ किले की डरावनी कहानियां बहुत सुन रखीं थीं। यहाँ भूत-प्रेत आत्माओं के भटकने के किस्से सुन-सुन कर ही कौतूहलवश इस किले में घूमने का प्रोग्राम बनाया था।
इस किले को पूरा दिन घूमते-घूमते शाम हो गयीं। मैंने अपने ममेरे भाई देवेश से कहा चलो,अब वापस चलते हैं पांच बज गये है। शाम छह बजे के बाद यहाँ इस भूतिया जगह पर किसी को रुकने की अनुमति नहीं है। देवेश बोला अभी एक घंटा बाकी है चलो किले के उन हिस्सों को देखते हैं जहाँ अभी तक हम नहीं गये हैं। वह मुझे लगभग धक्का देते हुये अंदर ले गया।
किले का अंदर का हिस्सा वाकई बहुत रहस्यमयी था। चलते-चलते अचानक हमें अंदर एक सुंदर सी स्त्री नजर आयी। जिसे देखते ही मेरे ममेरे भाई ने मुझसे कहा कि तुम मुझे फालतू डरा रहे थे। उस औरत को देखो, वह इस भूतिया किले में अकेली घूम रही है। देखो यह कितनी हिम्मती है और एक हम हैं जो डर के कारण पूरा किला देखें बिना वापस चले जा रहे थे।
भाई देवेश की बात सुनकर मेरी हिम्मत बंधी। हम किले में अलग-अलग विशालकाय स्थानों में घूमने लगे तभी मैने जो कुछ देखा तो चौक गया। वह औरत, जो किले में अकेली घूम रही थीं उसके कपड़ों का रंग बदल गया था पहले उसके कपड़ों का रंग, जो पहले लाल था अब सफेद हो गया था।
मैं बुरी तरह डर गया सोचने लगा कहीं यह कोई चुड़ैल तो नहीं। मैने अपने से कुछ दूरी पर चल रहे अपने भाई देवेश से स्त्री के कपड़ों के रंग बदलने क़े बारे में बताया, लेकिन उसने मेरी बातों को केवल वहम बताया।
मैने सोचा मेरा भाई ठीक ही कह रहा होगा शायद वह मेरी आंखों का धोखा होगा। भाई ने कहा कि उस स्त्री क़े कपड़ों क़े रंगों क़े बारे में सोचना छोड़ कर किले क़े बायीं ओर उस पुराने पेड़ की ओर चलते हैं। अंधेरा हो चला था। मैं अंदर ही अंदर कांप रहा था कि कहीं आज किसी भानगढ़ के किले के भूत से पंगा न हो जाये।
तभी मुझे बड़ी सी परछाई दिखाई दी। मैने भाई देवेश से कहा…वह परछाई देखो। देवेश ने कहा कि किसी पेड़ की छाया होगी। अब हमारे चौकने का वक्त था। उस अकेली घूम रही स्त्री क़े कपड़ों रंग फिर बदल गया था वह अब काले रंग के कपड़ों में घूम रही थी और हमारे बहुत करीब थी। हम दोनों भाइयों की तो घिघ्घी बंघ गयीं। इससे पहले की वह भूतनी पलट कर हमारी तरफ देखती, हम दोनों सर पर पाँव रखकर तेजी से किले के बाहर की तरफ भागे।
ऐसा लग रहा था कि कोई शैतानी ताकत हमारा पीछा कर रही है। दौड़ते-दौड़ते मेरे भाई देवेश का पाँव एक पत्थर से जा टकराया और वह मुँह के बल गिर पड़ा। मैने उसे जल्दी से सहारा देकर उठाया और दोनों भाई हाथ पकड़कर बाहर की तरफ भागे। किले क़े बाहर आकर सांस में सांस आई। ऐसा लग रहा था कि हम मौत के मुँह से बाहर निकल कर आये थे।