जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया तब पांडवों को अपने किये पर बड़ी ग्लानि हुई कि उनके हाथों से न जाने कितने सगे संबंधियों की हत्या हो गई। उनसे यह घोर अपराध हो गया। उन्होंने सोचा कि अब इसका प्रायश्चित करना चाहिए।
वह सभी पाँचों भाई अपने पाप का बोझ मन में लेकर भगवान कृष्ण के पास गये। उन पाँचों भाइयों के मुख को देखकर ही भगवान श्री कृष्ण उनके मन की बात जान गये लेकिन वह फिर भी उनके मुँह से उनकी समस्या जानना चाहते थे। उन्होनें पांडवों से पूछा कि क्या बात है? आप सब भाइयों के आने का कोई विशेष प्रयोजन है?
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से अपने मन की व्यथा बतायी। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन की सारी बात सुनी। पहले तो वह मुस्कुराये क्योंकि गीता के उपदेश में ही उन्होंने अर्जुन को जीवन के सच से परिचित करा दिया था।
लेकिन पांडवों के बहुत आग्रह करने पर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें उन हत्याओं का प्रायश्चित करने का उपाय बताया। श्री कृष्ण भगवान ने पांडवों को एक काले रंग का ध्वज और एक काले रंग की गाय दी और उन्होंने कहा कि तुम सभी पांचों भाइयों को इस गाय के पीछे-पीछे चलना है।
जहां-जहां तक यह गाय जाये, वहां-वहां तुम सब उसका अनुसरण करना। चलते-चलते जहाँ इस गाय और ध्वज दोनों का रंग काले से सफेद हो जाये, उसी स्थान पर रुक जाना। काले रंग की गाय और काले रंग का ध्वज का सफेद होना इस बात का सूचक है कि तुम लोगों पर से पाप की काली छाया हट गयी है।
इसके बाद तुम सभी पाँचों भाई उस स्थान पर रुककर भगवान शिव की तपस्या करना। यह तपस्या तुम्हें तब तक करनी है जब तक भगवान शिव दर्शन ना दे दें। पांडवों ने पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण की बताई गयी बातों पर अमल किया।
पांडव उस काली गाय और उस काले ध्वज को लेकर चल दिये। रातों-दिन चलते हुए जब वह गुजरात के कोलियाक तट पर पहुंचे तो चमत्कार हो गया। उनके आगे चल रही उनकी काली गाय और हाथ के ध्वज का रंग, जो अब तक काला था; सफेद रंग में बदल गया।
पांडवों को श्री कृष्ण की बतायी बात याद आ गयी कि गाय और ध्वज का रंग सफेद होते ही वे सभी पाप से मुक्त हो जायेंगे। पांडवों को अब संतोष हो गया कि उन्हें अपने पापों से मुक्ति मिल गयी है।
श्री कृष्ण भगवान के कहने के अनुसार पांडवों ने उसी तट पर अपना डेरा डाल दिया। वहीं रुक कर वे सभी पाँचों भाई शिव जी की घोर तपस्या करने लगे जहाँ उन्हें कई वर्ष बीत गये। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें शिवलिंग के रूप में दर्शन दिये।
आश्चर्य की बात यह थी कि इस स्थान पर पाँचों भाइयों के लिए अलग-अलग शिवलिंग प्रकट हुआ । पांडव भगवान शिव के शिवलिंग के आगे नतमस्तक हो गए और भगवान शिव से अपने निष्कलंक होने के आशीर्वाद देने की विनती की।
कहाँ है ये मंदिर
भगवान शिव ने पांडवों को निष्कलंक होने का आशीर्वाद दिया। भगवान शिव की कृपा से पांचों भाई पाप से पूरी तरह मुक्त हो गये। इस स्थान पर पांडव निष्कलंक हुये थे इसीलिए इस मंदिर का नाम निष्कलंक महादेव के मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। महाभारत काल की इस घटना में प्रकट पाँच शिवलिंग वाला मंदिर आज भी गुजरात के भावनगर के कोलियाक तट पर स्थित है।
भक्तों को दर्शन के लिये तट से लगभग 3 किलोमीटर अंदर समुद्र में प्रवेश करना होता है तब वह निष्कलंक महादेव मंदिर तक पहुँच पाते हैं। यह वही चमत्कारिक मंदिर है जहाँ भगवान शिव प्रकट हुये थे और उन्होनें अपने शरण में आये पांडवों को उनके पापों से मुक्ति दी थी। यह मंदिर अरब सागर में है जो कभी-कभी ज्वार आने पर गुजरात का यह निष्कलंक महादेव मंदिर पानी में डूब जाता है।
उस समय इस मंदिर का ध्वज दिखाई देता है। यह भगवान शिव का वह धाम है जहां भक्त अपने कई जन्मों के पापों से मुक्ति पा लेते हैं। महादेव का यह मंदिर समुद्र की गोद में सुशोभित है। इस मंदिर में भगवान शिव के पाँचों शिवलिंग को स्पर्श करने के पश्चात भक्त अपनी दरिद्रता से मुक्त हो जाता है। निष्कलंक महादेव के मंदिर में आकर भगवान की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है।
इस मंदिर के देवता भक्तों को मुसीबत में भी चट्टान की तरह खड़े रहने का संदेश देते हैं क्योंकि अरब सागर के जल में स्थापित यह मंदिर सदियों से अडिग खड़ा है। सागर की तेज लहरें और समय-समय पर आने वाला ज्वार इस मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाता।
यह इस मंदिर के देवता, देवों के देव महादेव की महिमा है कि उनके प्रताप के कारण ही ज्वार के आने पर मंदिर के पानी में डूब जाने के बाद भी मंदिर में कुछ भी नष्ट नहीं होता। जल में होने के बाद भी यह शिव मंदिर हजारों वर्षों से विद्यमान है।