अपने कार्य के प्रति समर्पित डॉक्टर की कहानी तो आपने बहुत सुनी होगी। लेकिन किसी डॉक्टर की आत्मा के द्वारा मरीज की जान बचाने की कहानी सुनने में बिल्कुल अविश्वसनीय सी लगती है। लेकिन उस छोटे से अस्पताल में जिन कर्मचारियों ने इस अदभुद नज़ारे को देखा, वे उसे सोलह आने सच बताते हैं।
जौनपुर शहर से लगभग 22 किलोमीटर दूर गांव में डॉक्टर जयदेव ने अपना एक छोटा सा प्राइवेट अस्पताल खोल रखा था। उस छोटे से अस्पताल को वह बड़े जी -जान से चलाते थे। वे अपने मरीजों का इलाज करते समय अपनी भूख- प्यास सब भूल जाते थे। उनके अपने कार्य के प्रति इसी समर्पण भावना के कारण इस अस्पताल में मरीजों का तांता लगा रहता था।
उनके इलाज के सामने शहर के बड़े-बड़े डॉक्टर भी फेल थे। दूरदराज के मरीज भी उनका नाम सुनकर यहीं इलाज के लिये आते थे। डॉक्टर जयदेव ने हमेशा मनुष्य और मनुष्यता को पैसे से बढ़कर माना। इसीलिए तो लोग उनकी मिसाल देते थे। डॉक्टर जयदेव के मातहत दो अन्य जूनियर डॉक्टर भी काम करते थे।
इस अस्पताल के अच्छे इलाज के कारण ही मरीज रोते हुए यहाँ आता था और हंसते हुए अपने घर वापस जाता था। गांव वाले डॉक्टर जयदेव को भगवान का दर्जा देते थे। डॉक्टर साहब के लाख मना करने पर भी ग्रामवासी अपने खेतों की ताजी-ताजी सब्जियां व फल उनके घर पहुंचा देते थे। डॉक्टर साहब को अपने हाथ से उगाई सब्जी खिलाकर ग्रामवासियों को ऐसा लगता था कि जैसे वह अपने भगवान को भोग लगा रहे हों।
निश्चय ही गाँव वालों की ऐसी भावना उन डॉक्टर साहब को और अधिक सेवाभाव से कार्य करने की प्रेरणा देती थी। अब आया कोरोना काल। लेकिन डॉक्टर जयदेव अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने मरीजों के इलाज में पूर्व की भांति लगे रहते। डॉक्टर जयदेव की देख -रेख में दोनों जूनियर डॉक्टर भी लगन से काम कर रहे थे।
जिसके कारण कोरोना के मरीज जल्दी अच्छे होकर घर जा रहे थे। अस्पताल में दिन भर काम करने के बाद डॉ जयदेव हर रात 9:00 बजे कोरोना मरीज के वार्ड में एक राउंड अवश्य लगाते थे। इसी बीच एक अनहोनी घटना हो गई। डॉक्टर जयदेव भी कोरोना पॉजिटिव हो गये। बहुत कोशिशों के बाद भी डॉक्टर जयदेव को नहीं बचाया जा सका।
डॉक्टर जयदेव की मौत के बाद इस अस्पताल के सभी कर्मचारी मायूस हो गए और बिल्कुल टूट गये। वे सभी सोचते थे कि अब उन बड़े डॉक्टर साहब के बिना यह अस्पताल कैसे चल पायेगा।
डॉक्टर साहब की मौत के 3 दिन बीत गए थे। उस रात दोनों जूनियर डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बाद अस्पताल से चले गए थे। रात के 9:00 बज रहे थे। इस समय अस्पताल के चौकीदार ने वार्ड के अंदर का जो कुछ दृश्य देखा तो उसे देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।
उसने देखा कि डॉक्टर जयदेव कोरोना वार्ड में पहले की तरह रात नौ बजे वाला राउंड लगा रहे थे। चौकीदार को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन यह सब सच था। मरने के बाद भी मरीजों की चिंता डॉक्टर साहब को अस्पताल खींच लाई थी। डॉक्टर जयदेव की आत्मा कोरोना के मरीजों का इलाज कर रही थी।