यह कहानी है मध्य प्रदेश के रीवां शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर एक गांव की। इस गाँव में पंडित श्यामसुंदर नाम के एक व्यक्ति रहते थे। पंडित जी का काम था लोगों के घर-घर जाकर कथा सुनाना। उनकी जीविका का यही एकमात्र साधन था। पंडित श्याम सुंदर जी की पत्नी भी पंडित जी के सभी धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थीं।
पूरे गाँव में पंडित श्याम सुंदर ही वह इंसान थे, जो गाँव वालों के हर धार्मिक कार्यों को सकुशल संपन्न कराते थे। पंडित श्याम सुंदर ग्रामवासियों के लिये शुभता के प्रतीक थे। गाँव वालों को पता था कि पंडित जी दिल से सबका भला चाहते हैं। इसलिये वह हर शुभ अवसर पर पंडित श्याम सुंदर जी को ही याद करते थे।
पंडित जी भी अपनी पूरी लगन के साथ यजमान के घर विशेष अवसरों पर जाकर भगवान की कथा को खूब गा-गा कर सुंदर स्वर में प्रस्तुत करते थे। उनका बड़ा बेटा राघव हारमोनियम पर संगत देता था। पंडित जी के कथा वाचन के समय बहुत सुंदर समां बंध जाता था। जिसके कारण यजमान गण प्रसन्न होकर पंडित जी को दिल खोलकर धन-धान्य समर्पित करते थे।
उनके घर में माँ सरस्वती भी प्रसन्न थीं। जिसके कारण उनके घर में बच्चे भी पढ़ाई में अव्वल थे। पंडित जी के बच्चों को न जाने कितने श्लोक मुँह जबानी याद थे। पंडित श्याम सुंदर जी की दूर-दूर तक प्रसिद्धि थी। यजमान उन्हें अपनी गाड़ी से ले जाते थे और फिर उन्हें ससम्मान अपने घर पहुँचा भी देते थे। पंडित जी को गांव का हर व्यक्ति बहुत सम्मान की दृष्टि से देखता था।
कहीं भी शादी-विवाह, मुंडन, भगवान सत्य नारायण की कथा में उन्हीं से पाठ कराने की होड़ लगी रहती थी। न जाने क्यों लोगों को यह विश्वास था कि यदि उनके घर में पंडित श्याम सुंदर जी कथा करेंगे तो भगवान की निश्चय ही उनके घर पर कृपा हो जायेगी। वास्तव में ऐसा था भी, देखा गया कि जिस घर में पंडित श्याम सुंदर ने प्रभु की पूजा-अर्चना की, वह घर धन-धान्य से भर गया साथ ही उनके घर से रोग- शोक सब दूर हो गया।
अब आया कोरोना काल। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण लॉक डाउन ही घोषित हो गया। पंडित श्याम सुंदर का कथा सुनाने का कारोबार भी ठप हो गया। लोगों ने किसी के घर जाना या किसी को घर पर बुलाना, कोरोना वायरस के डर की वजह से पूरी तरह बंद कर दिया। पूजा पाठ करके ही पंडित श्याम सुंदर जी अपने घर की जीविका चलाते थे। अब वे आर्थिक संकट में आ गये।
लॉक डाउन का एक महीना बीता। फिर दो महीने हो गये लॉकडाउन बढ़ता ही गया। घर का खर्चा भला बिना आय के कितने दिन चलता। पंडित जी संकोची स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने आर्थिक संकट का जिक्र किसी से नहीं किया। नहीं तो गाँव वाले हर संभव, पंडित जी की आर्थिक सहायता करते।
पंडित श्याम सुंदर को बस अपने शंकर भगवान पर पूरा विश्वास था कि वही इस लॉक डाउन में उन्हें आर्थिक संकट से उबारेँगे। वह बस सुबह-शाम प्रभु की में पूजा-अर्चना में लगे रहते। उस दिन लॉकडाउन की कड़की में श्याम सुंदर के घर भी एक पैसा न था। वह उदास बैठे थे। उनका प्रभु पर से विश्वास टूट रहा था कि तभी उनके घर की डोरबेल बजी।
पंडित श्याम सुंदर ने दरवाजा खोला तो एक सज्जन दरवाजे पर खड़े थे। पंडित जी ने आगंतुक से आने का उद्देश्य पूछा, तो उन्होनें सबसे पहले पूछा कि क्या आप पंडित श्याम सुंदर ही हैं? पंडित जी ने बताया कि जी हाँ, मैं ही पंडित श्याम सुंदर हूँ। तब आगंतुक ने कहा कि “पंडित जी आपका बहुत नाम सुनकर ही आपके पास आया हूँ।
सुना है कि आप भगवान की सुंदर कथा कहते हैं। मैं उसका रसास्वादन करने आया हूँ। मैं भगवान सत्यनारायण की कथा आपके मुख से सुनना चाहता हूँ। बहुत दिनों से मेरी इच्छा थी कि प्रभु कथा सुनूँ। कल प्रभु ने भी स्वप्न में दर्शन देकर मुझसे कहा कि मुझे अपने और अपने परिवार के कल्याण के लिए भगवान सत्यनारायण की कथा अवश्य सुननी चाहिए।
पंडित श्यामसुंदर जी आगंतुक की सारी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गये। वह मन ही मन सोचने लगे कि इस लॉकडाउन में भगवान ने ही यह एक यजमान भेज है। पंडित श्याम सुंदर ने आगंतुक को प्रेम पूर्वक आसन दिया और बड़े विधि विधान से उन्हें भगवान सत्यनारायण की कथा सुनाई। वे सज्जन भाव-विभोर होकर पंडित जी की कथा सुनते रहे।
कथा के अंत में आरती हुई। पंडिताइन ने अपने हाथ से बनाया हुआ प्रसाद आगंतुक को दिया। उन्होनें बड़े प्रेम से प्रसाद खाया। उन सज्जन ने जाते-जाते पंडित जी को दक्षिणा में एक पोटली दी और अपना मोबाइल नंबर भी दिया और कहा कि लॉकडाउन खुलने पर वह उनके घर अवश्य आयें। पंडित जी ने दक्षिणा में प्राप्त पोटली ली और उन सज्जन का मोबाइल नंबर लिखा। जो शायद किसी स्थान का लैंडलाइन नंबर था। दक्षिणा देने के बाद वह सज्जन प्रणाम करके चले गये।
जब पंडित श्याम सुंदर ने दक्षिणा में मिली पोटली खोली, तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। उस पोटली में पूरे पचास हजार रुपये थे। उन्होंने तुरंत धन्यवाद देने के लिए उन आगंतुक द्वारा दिया हुआ नंबर लगाया तो पता चला कि वह शहर के घंटाघर में स्थित महादेव जी के मंदिर का लैंडलाइन नंबर था।
वहाँ के पुजारी ने फोन उठाया तो उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी में इस जगह से कोई व्यक्ति उनके घर कथा सुनने नहीं गया था। अब पंडित श्यामसुंदर जी को अपने आप समझ में आ गया कि स्वयं देवों के देव महादेव एक व्यक्ति का रूप धारण करके कथा सुनने उनके घर आए थे। ताकि वे भक्त श्यामसुंदर को लॉक डाउन के आर्थिक संकट से उबार सकें। वे बार-बार प्रभु को धन्यवाद देने लगे।
लॉकडाउन समाप्त होकर जब अनलॉक में बदल गया और श्रध्दालुओं के लिये मंदिर खुलने लगे तो पंडित श्याम सुंदर जी घंटाघर स्थित महादेव के मंदिर में गये और प्रभु की मूर्ति के चरणों में लोट गये। उनकी आंखों से लगातार आसुओं की धारा बह रही थी। वे भाव विभोर थे। क्योंकि भगवान उनके घर खुद चलकर कथा सुनने आए थे।