आज हम आपका एक ऐसे विशाल पुल से परिचय कराने जा रहे हैं, जो कुछ लोगों की केवल एक दिन की कमाई से निर्मित हुआ। आज का आदमी यही सोचता है कि आखिर एक दिन की कमाई से क्या हो सकता है? लेकिन वर्ष 1850 में कुछ व्यापारियों ने अपनी एक दिन की आमदनी से एक शानदार पुल का निर्माण करा दिया।
आप सोच रहे होंगे कि यह सब बात मनगढ़ंत है क्योंकि केवल एक दिन कमाई से पुल का निर्माण कराना अविश्वसनीय लगता है लेकिन यह बात पूरी तरह सच है। प्राचीन समय में एक दिन की कमाई से बनाया हुआ पुल आज भी अपनी भव्यता और खूबसूरती भरे इतिहास की गाथा गा रहा है।
यह एक दिन की कमाई से बना हुआ पुल कहां है? वे कौन से व्यापारी थे जिन्होंने इस पुल का निर्माण कराया? उनकी एक दिन की कमाई आखिर कितनी रही होगी? जिनके योगदान से एक सपना जो सच हुआ।
आइये जानते हैं यह सब कुछ। केवल एक दिन की कमाई से बनाया जाने वाला यह पुल भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश राज्य के मिर्जापुर जिले में स्थित है। इस पुल का निर्माण वर्ष 1850 में कराया गया था। इस पुल की कहानी बहुत पुरानी है।
क्या है इस पुल की कहानी
उस समय बनारस (वाराणसी), जौनपुर, गाजीपुर और आजमगढ़ आदि जिलों से आने-जाने वाले रूई के व्यापारियों का मुख्य केंद्र मिर्जापुर ही हुआ करता था। वे व्यापारी रूई व्यवसाय के लिए मिर्जापुर ही आया-जाया करते थे।
यह वह समय था जब मिर्जापुर की रूई की मांग विदेशों तक थी। व्यापारी लोग व्यवसाय के सिलसिले में जब विंध्याचल से होते हुए मिर्जापुर आते थे तो उन्हें एक नदी पार करनी पड़ती थी। जिस बड़ी नदी का नाम था ओझला नदी।
एक दिन की बात है कि एक व्यापारी अपनी रूई को नाव में लादकर दूसरी तरफ ले जा रहा था कि बीच नदी में तेज बहाव आया और उस व्यापारी की सारी रूह भीग गई।
उस व्यापारी ने उसी दिन यह संकल्प लिया कि वह एक ऐसा उपाय करेगा जिससे व्यापारियों को नाव के द्वारा आना-जाना नहीं पड़ेगा, क्योंकि नदी का बहाव नाव में लदी हुई रूई को नुकसान पहुंचाती है। उस व्यापारी ने अन्य व्यापारियों को एकजुट किया।
मिर्जापुर में रूई व्यवसाय से जुड़े सभी व्यापारियों की एक बैठक बुलाई गई। उस बैठक मे यह निर्णय लिया गया कि ओझला नदी पर एक भव्य पुल का निर्माण किया जायेगा।
जिसके निर्माण में होने वाले खर्च के लिये सभी रूई व्यवसायी अपनी एक दिन की कमाई ओझला पुल के निर्माण के लिये देंगे। सभी रूई व्यापारी ओझला पुल के निर्माण के लिए अपनी एक दिन की कमाई देने के लिये सहर्ष तैयार हो गए।
जब सभी रूई के व्यापारियों द्वारा पुल के निर्माण के लिए उनके योगदान की धनराशि एकत्र हुई तो यह धनराशि वर्ष 1850 में लगभग 50 लाख रुपये थी। उस समय का 50 लाख रुपये आज के लगभग सौ करोड़ रुपये के बराबर था।
जरा आप सोचिए कि कुछ रूई व्यापारियों द्वारा एकत्र की गई उनकी एक दिन की कमाई इतनी अधिक हो सकती है तो अनुमान लगाइए कि उस पुराने जमाने में रुई के व्यापारी 1 महीने में कितना ज्यादा कमाते होंगे ! ओझला नदी पर पुल के लिए धनराशि एकत्र होने के पश्चात एक महंत परशुराम गिरी नामक व्यक्ति को सारे रुपये दे दिये गये।
जिन्होंने एक अदभुत पुल का निर्माण कराया। आइये जानते है कि ओझला पर बना यह पुल अद्भुत किस प्रकार से है? आश्चर्य की बात यह है कि मिर्जापुर की ओझला नदी पर बना यह पुल ऊपर से एक विशाल सेतु के रूप में नजर आता है, लेकिन यदि आप इस पुल के भीतरी हिस्सों को देखें तो आश्चर्य में पड़ जाएंगे। यह पुल इतना विशाल बनाया गया है कि इसके पिलर में व्यापारियों के रुकने के लिए गर्भ गृह की व्यवस्था है।
एक पंथ दो काज यानि की ऊपर से दिखने वाला ओझला नदी का यह पुल अंदर से विशालकाय भवन है। रूई व्यापरियों ने अपने लिए इस ओझला पुल को केवल पार करने के लिए ही नहीं बनाया। बल्कि उसमें दूर-दराज से आने वाले रूई व्यापारियों की रुकने व्यवस्था भी बना ली।
आज मिर्जापुर का यह ओझला पुल अपने सुनहरे इतिहास की कहानी कह रहा है। यह पुल वास्तुकला का सुंदर नमूना है। देखने से ऐसा लगता है कि इसको बनाने वालों ने बड़े दिल से इस पुल का निर्माण किया।
इस पुल पर उकेरी गई सुंदर कला और नक्काशी ने इस जगह को एक अनुपम स्थान बना दिया है। जो भी यहाँ आता है पल भर को ओझला पुल की खूबसूरती में खो जाता है।
इस पुल की भव्यता और कलाकारी पथिक को अपनी ओर आकर्षित करती है। इस शानदार पुल को देखकर यही लगता है कि इसको प्राचीन काल के किसी राजा-महराजा ने बनवाया होगा। कभी-कभी ऐसा लगता है कि यह ओझला पुल किसी राजमहल का हिस्सा होगा।
लेकिन यहाँ आने वाले विदेशियों को जब इस बात का पता लगता है कि इस भव्य ओझला पुल को कुछ रूई के व्यापरियों ने अपने एक दिन कमाई से बनवाया है तो उनके मुँह से यही निकलता है कि धन्य है भारत देश और धन्य हैं यहाँ के रहने वाले लोग।