जरासन्ध, शिशुपाल, शल्य, धृष्टकेतु और कंस पूर्व जन्म में कौन थे
वैशम्पायन जी कहते हैं, जनमेजय! अब मैं यह वर्णन करता हूँ कि किन-किन देवता और दानवों ने किन-किन मनुष्यों के रूप में जन्म लिया था। दानवराज विप्रचित्ति जरासन्ध और हिरण्यकशिपु शिशुपाल के रूप में पैदा हुआ था। संह्लाद शल्य और अनुह्लाद धृष्टकेतु बन कर पैदा हुआ था। शिबि दैत्य द्रुम राजा के रूप में और वाष्कल भगदत्त हुआ था। कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था।
द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, और भीष्म पूर्व जन्म में कौन थे
भरद्वाज मुनि के यहाँ बृहस्पति जी के अंश से द्रोणाचार्य अवतीर्ण हुए थे। वे श्रेष्ठ धनुर्धर, उत्तम शास्त्रवेत्ता और परम तेजस्वी थे। उनके यहाँ महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से भयंकर अश्वत्थामा का जन्म हुआ था। वसिष्ठ ऋषि के शाप और इन्द्र की आज्ञा से आठों वसु राजर्षि शान्तनु के द्वारा गंगा जी के गर्भ से उत्पन्न हुए। उन में सबसे छोटे भीष्म थे। वे कौरवों के रक्षक, वेदवेत्ता ज्ञानी और श्रेष्ठ वक्ता थे।
कृपाचार्य, शकुनि, सात्यकि, राजर्षि द्रुपद, कृतवर्मा, विराट, धृतराष्ट्र, पाण्डु, विदुर किसके अंश से पैदा हुए थे
उन्होंने भगवान परशुराम से युद्ध किया था। रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया था। द्वापर युग के अंश से शकुनि का जन्म हुआ था। मरुद्गण के अंश से वीरवर सत्यवादी सात्यकि, राजर्षि द्रुपद, कृतवर्मा और विराट का जन्म हुआ था। अरिष्टा का पुत्र हंस नामक गन्धर्वराज धृतराष्ट्र के रूप में पैदा हुआ था और उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में। सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए।
दुर्योधन और उसके सौ भाई तथा युयुत्सु और युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन तथा नकुल-सहदेव किसके अंश से उत्पन्न हुए थे
कुरुकुलकलंक दुरात्मा दुर्योधन कलियुग के अंश से उत्पन्न हुआ था। उसने आपस में वैर की आग सुलगाकर पृथ्वी को भस्म किया। पुलस्त्य-वंश के राक्षसों ने दुर्योधन के सौ भाइयों के रूप में जन्म लिया था। धृतराष्ट्र का वह पुत्र, जिसका नाम युयुत्सु था, दासी के गर्भ से उत्पन्न एवं इनसे अलग था। युधिष्ठिर धर्म के, भीमसेन वायु के, अर्जुन इन्द्र के तथा नकुल-सहदेव अश्विनी कुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे।
अभिमन्यु पूर्व जन्म में कौन था
चन्द्रमा का पुत्र वर्चा अभिमन्यु हुआ था। वर्चा के जन्म के समय चन्द्रमा ने देवताओं से कहा था, “मैं अपने प्राण प्यारे पुत्र को नहीं भेजना चाहता। फिर भी इस काम से पीछे हटना उचित नहीं जान पड़ता असुरों का वध करना भी तो अपना ही काम है। इसलिये वर्चा मनुष्य बनेगा तो सही, परन्तु वहाँ अधिक दिनों तक नहीं रहेगा। इन्द्र के अंश से नरावतार अर्जुन होगा, जो नारायणावतार श्रीकृष्ण से मित्रता करेगा।
मेरा पुत्र अर्जुन का ही पुत्र होगा। नर नारायण की उपस्थिति न रहने पर मेरा पुत्र चक्रव्यूह का भेदन करेगा और घमासान युद्ध करके बड़े-बड़े महारथियों को चकित कर देगा। दिनभर युद्ध करने के बाद सायंकाल में वह मुझ से आ मिलेगा। इसकी पत्नी से जो पुत्र होगा, वही कुरुकुल का वंशधर होगा।”
धृष्टद्युम्न, शिखण्डी तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेन किसके अंश से पैदा हुए थे
सभी देवताओं ने चन्द्रमा की इस उक्ति का अनुमोदन किया। जनमेजय! वही आपके दादा अभिमन्यु थे। अग्नि के अंश से धृष्टद्युम्न और एक राक्षस के अंश से शिखण्डी का जन्म हुआ था। विश्वेदेवगण, द्रौपदी के पाँचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेन के रूप में पैदा हुए थे।
कर्ण की उत्पत्ति कैसे हुई
वसुदेव जी के पिता का नाम शूरसेन था। उनकी एक अनुपम रूपवती कन्या थी, जिसका नाम था पृथा। शूरसेन ने अग्नि के सामने प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपनी पहली सन्तान अपनी बुआ के सन्तानहीन पुत्र कुन्तिभोज को दे दूंगा। उनके यहाँ पहले पृथा का ही जन्म हुआ, इसलिये उन्होंने उसे कुन्तिभोज को दे दिया। जिस समय पृथा छोटी थी, अपने पिता कुन्तिभोज के पास रहती और अतिथियों का सेवा-सत्कार करती। एक बार पृथा ने दुर्वासा ऋषि की बड़ी सेवा की।
उसकी सेवा से जितेन्द्रिय ऋषि बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने पृथा को एक मन्त्र बतलाया और कहा कि ‘कल्याणि! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम इस मन्त्र से जिस देवता का आवाहन करोगी, उसी के कृपा-प्रसाद से तुम्हें पुत्र उत्पन्न होगा। ‘दुर्वासा ऋषि की बात सुनकर पृथा (कुन्ती) को बड़ा कुतूहल हुआ। उस ने एकान्त में जाकर भगवान सूर्य का आवाहन किया। सूर्यदेव ने आकर तत्काल गर्भस्थापन किया, जिस से उन्हीं के समान तेजस्वी कवच और कुण्डल पहने एक सर्वांग-सुन्दर बालक उत्पन्न हुआ। कलंक से भयभीत होकर कुन्ती ने उस बालक को छिपाकर नदी में बहा दिया।
अधिरथ ने उसे निकाला और अपनी पत्नी राधा के पास ले जाकर उसे पुत्र बना लिया। उन दोनों ने उस बालक का नाम वसुषेण रखा था। वही पीछे कर्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वह अस्त्र-विद्या में बड़ा प्रवीण और वेदांगों का ज्ञाता हुआ। वह बड़ा उदार, सत्य, पराक्रमी और बुद्धिमान् था। जिस समय वह जप करने के लिये बैठता, उस समय ब्राह्मण उस से जो माँगते वही दे देता था।
एक दिन की बात है। कर्ण जप कर रहा था। देवराज इन्द्र सारी प्रजा और अपने पुत्र अर्जुन के हित के लिये ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके पास आये और उन्होंने उस के शरीर के साथ उत्पन्न कवच और कुण्डल मांगे। कर्ण ने अपने शरीर से चिप के कवच को उधेड़कर और कुण्डल उतारकर दे दिये उसकी इस उदारता से प्रसन्न होकर इन्द्र ने एक शक्ति दी और कहा, ‘हे अजित! तुम यह शक्ति देवता, असुर, मनुष्य, गन्धर्व, सर्प, राक्षस अथवा जिस किसी पर चलाओगे, उसका तत्काल नाश हो जायगा। ‘तभी से वह वैकर्तन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
श्रीकृष्ण, बल देव जी, प्रद्युम्न, रुक्मिणी, द्रौपदी, कुन्ती, माद्री और गान्धारी किसके अंश से उत्पन्न हुए
वह श्रेष्ठ योद्धा, दुर्योधन का मन्त्री, सखा और श्रेष्ठ महापुरुष था और सूर्य के अंश से उत्पन्न हुआ था। देवाधि देव सनातन पुरुष नारायण भगवान के अंश से वासुदेव श्रीकृष्ण अवतीर्ण हुए। महाबली बल देव जी शेष के अंश थे। कामदेव जी प्रद्युम्न हुए। यदुवंश में और भी बहुत से देवता मनुष्य के रूप में अवतीर्ण हुए थे।
राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी के रूप में लक्ष्मी जी और द्रुपद के यहाँ यज्ञ कुण्ड से द्रौपदी के रूप में इन्द्राणी उत्पन्न हुई थीं। कुन्ती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृतिका जन्म हुआ था। वे ही पाण्डवों की माता हुईं। मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गान्धारी के रूप में हुआ था। इस प्रकार देवता, असुर, गन्धर्व, अप्सरा और राक्षस अपने-अपने अंश से मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए थे।