मौत के पश्चात मनुष्य के शरीर से आत्मा निकल कर कहाँ जाती है? उसका क्या होता है? उसे किस प्रकार दूसरा शरीर मिलता है? यह सभी प्रश्न रहस्य के अंधेरे में हैं। लोगों का अनुमान है कि मृत्यु के पश्चात भी आत्मा अपने परिवार की इर्द-गिर्द ही रहती है।
जब तक की उसे दूसरा शरीर नहीं मिल जाता। तभी तो न जाने कितनी ही सत्य घटनाओं में लोग कुछ दिनों तक मृत व्यक्ति की आहट या आभास अपने आस-पास ही महसूस करते हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि मृत्यु के पश्चात आत्मा अपने खुद के परिवार या रिश्तेदारों में नया जन्म लेने का प्रयास करती है। ऐसी कितनी ही सच्ची घटनायें देखने को मिलती है जब आत्माओं ने अपने ही परिवार में जन्म लिया।
ऐसी ही एक सत्य घटना उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की है। जिसमें एक आत्मा पुनः अपनों के बीच आने का प्रयास करती है। यह कहानी है ग्रामीण परिवेश से जुड़ी हुई अर्चना की। अर्चना अपने परिवार में अपने भाई-बहनों में नंबर वन पर थी।
बचपन से ही अर्चना में सदैव आगे बढ़ने की ललक थी। स्टूडेंट लाइफ के समय एन सी सी में सबसे आगे, कॉलेज के रिजल्ट में भी सबसे अगली पंक्ति में स्थान मिलता था। अर्चना आठवीं क्लास में ही मोटर साइकिल चलाना सीख गयी थी।
कहना न होगा कि वह लड़की होने के बाद भी लड़कों की तरह हिम्मती थी। वह किसी भी कठिन काम को बड़े दिलेरी के साथ करती थी। समय बीतता गया अर्चना सयानी हो गयी।
विवाह योग्य होने पर मां-बाप ने उसके लिए सुयोग्य वर की तलाश करना शुरू किया लेकिन अर्चना को किसी से प्यार हो गया था। इसलिए वह अपने प्रेमी को ही अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी।
इसके लिए उसने अपने माँ-बाप से निवेदन किया लेकिन परिवार में बहुत विरोध हुआ। अर्चना के भाई आदर्श के पूर्ण सहयोग मिलने के कारण उसका सपना सच हो गया। उसका गठबंधन उसी व्यक्ति के साथ हुआ जैसे वह चाहती थी।
समय के साथ अर्चना माँ बन गई। उसने जुड़वाँ पुत्रियों को जन्म दिया लेकिन अर्चना को पुत्र पाने की प्रबल इच्छा थी जो पूरी नहीं हो सकी। अर्चना के विवाह को पाँच वर्ष बीत गये। एक बार फिर अर्चना को पुत्र पाने की अभिलाषा जाग उठी।
उन्हीं दिनों दुर्भाग्यवश उसकी सास का देहांत हो गया। मरते समय उसकी सास ने अपने पुत्र अर्थात अर्चना के पति नीलेश से कहा था कि “बेटा अफसोस मत करो। मैं फिर इसी घर में ही जन्म लूंगी।”
ऐसा कहा जाता है कि मरते समय मनुष्य की जो भी इच्छा बलवती हो जाती है। वह अगले जन्म में अवश्य पूर्ण होती है। धीरे-धीरे उस परिवार की बहु अर्चना पुनः प्रेगनेंट हो गयी।
उसका पुनः गर्भवती होने का एकमात्र उद्देश्य यह था कि उसे इस बार पुत्र को जन्म देना है क्योंकि उसके पास दो लड़कियां पहले से थीं। अर्चना के मन में गलत भावना ने जगह बना ली। उसके मन में पाप आ गया। उसने पहले ही सोच रखा था कि यदि इस बार फिर लड़की होने की संभावना हुई तो वह अबॉर्शन करा लेगी।
गर्भ के दो महीने पश्चात अर्चना ने अपने भ्रूण की जाँच करा ली। गर्भ के परीक्षण के पश्चात पता चला कि उसे फिर पुत्री होने की संभावना है। गर्भ अधिक समय का हो गया था लेकिन अर्चना ने अबॉर्शन कराने का पक्का मन बना लिया था।
इधर फिर लड़की पैदा होने की संभावना जानकर अर्चना के पति निलेश को अपनी मां की मरते समय कही हुईं बातें ध्यान आने लगी। उसकी माँ ने मरते हुए कहा था कि बेटा मैं फिर से तुम्हारे घर में ही वापस आऊंगी। नीलेश को लगा कि उसकी माँ की आत्मा बेटी के रूप में फिर से इस परिवार में वापस आना चाहती हैं।
उसने इस बारे में अपनी पत्नी अर्चना को बताया कि लगता है कि माँ फिर से इस घर में आना चाहती है इसीलिये तुम्हारे गर्भ में लड़की है। उसने अर्चना से अबॉर्शन कराने के लिए भी मना किया लेकिन अर्चना नहीं मानी। बल्कि वह पति की इस बात को सुनकर हंसी और बोली कि मैं इन दकियानूसी बातों को नहीं मानती।
वह अबॉर्शन कराने की अपनी बात पर अड़ी रही बल्कि अपने पति के मन में फिर से लड़की पैदा करने की इच्छा जानकर अर्चना अगले ही दिन हॉस्पिटल में एडमिट हो गई।
जैसे ही डॉक्टर ने अबॉर्शन का कार्य आरंभ किया कि एक अनोखी घटना घटित हुई। ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टर्स द्वारा टूल्स आदि निकालते ही अर्चना के मुँह से चिल्लाने की आवाज निकली कि ‘नीलेश…नीलेश, बेटा, मुझे बचा लो ….नीलेश बेटा मुझे बचा लो।’
यह नीलेश दरअसल अर्चना की पति का नाम था जो ऑपरेशन थिएटर के बाहर था। अर्चना कभी भी अपने पति को उसके नाम से नहीं पुकारती थी लेकिन उस समय ऐसा क्या हुआ कि जो अर्चना के मुंह से अचानक अपने पति का नाम निकल पड़ा।
साथ ही आश्चर्य की बात यह थी कि अर्चना के मुंह से अपने पति के लिए बेटा शब्द का सम्बोधन एक रहस्यमय घटना थी। दरअसल अर्चना के मुँह से निकली आवाज उसकी मरी हुई सास कीआत्मा की थी। वह इस अबॉर्शन को रुकवाकर अपनी बहू की बेटी के रूप में पुनः वापस अपने परिवार में आना चाहती थी लेकिन ऐसा हो न सका। क्योंकि अबॉर्शन हो चुका था।
अर्चना ने घनघोर पाप किया था, लेकिन उसके पति नीलेश ने भी उसे सख्ती से रोका नहीं, जिसकी सज़ा उन दोनों को मिली।