शांति मंत्र की रचना कब, क्यों और किस उद्देश्य से की गई, इसकी कहानी बड़ी रोचक है। जब इस सृष्टि का निर्माण हुआ तो इस सृष्टि में पेड़-पौधे, नदियाँ, पशु-पक्षी, कीड़े मकोड़े, और मनुष्य आदि सभी अस्तित्व में आये। ऐसे में चारों तरफ वातावरण में एक कोलाहल उत्पन्न हो गया। बड़े-बड़े वृक्षों से चलने वाली आंधी तूफान की आवाज, सागरों, महासागरों के जल के तेज बहाव एवं उसके पत्थर पर टकराने की आवाज, जानवरों के शोर मचाने, मनुष्यों के चीखने-चिल्लाने और चील-कौओं की आवाज।
कहने का अर्थ यह कि संपूर्ण वातावरण में अशांति फैलाने लगी। देवताओं के लिए यह आवाजें चिंता का प्रश्न बन गयी। चारों तरफ गूंजने वाली कर्ण भेदक ध्वनियाँ सभी देवताओं के लिए समस्या का विषय बन गयी। इन परिस्थितियों में एक ऐसे उपाय की आवश्यकता थी, जिससे इन ध्वनियों को शांत किया जा सके। क्योंकि सृष्टि की रचना के बाद अब उस को नियंत्रित करने का प्रश्न था। ताकि चारों ओर होने वाली उथल-पुथल होने से बचा जा सकें।
जिससे सृष्टि के संपूर्ण वातावरण में पहले की तरह शांति स्थापित हो सके। समस्त देवता गण भागे-भागे विष्णु जी के पास गये। संयोगवश वहाँ उस समय ब्रह्मा जी और भगवान शिव पहले से विराजमान थे। देवताओं द्वारा इस समस्या के बारे में सुनकर वहाँ उपस्थित भगवान शंकर, ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु भी चिंतित हो उठे। तभी विष्णु जी ने पहले कुछ सोंचा फिर कमल का पुष्प उठाकर उसकी डंठल से क्षीर सागर के जल पर कुछ लिखने लगे।
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सभी देवतागण बड़े आश्चर्य से भगवान विष्णु जी को क्षीर सागर पर कुछ लिखते हुये देख रहे थे। भगवान विष्णु ने क्षीर सागर के जल पर कुछ लिखने के बाद अपनी लेखनी उठाई तो उस क्षीर सागर के जल पर एक मंत्र स्वर्ण अक्षरों में चमक उठा। इसके बाद भगवान विष्णु ने स्वयं उन स्वर्ण अक्षरों का उच्चारण किया ओर माँ सरस्वती ने वीणा वादन किया। जिसे सुनकर समस्त देवतागण मंत्रमुग्ध हो उठे।
दरअसल भगवान विष्णु ने अपने मुख से जिस मूल मंत्र का उच्चारण किया था वह ओम शांति मंत्र था । इस ओम शांति मंत्र की रचना भगवान विष्णु ने इसीलिए की थी ताकि संपूर्ण सृष्टि में पुनः शांति स्थापित हो सके। भगवान विष्णु के द्वारा उस मंत्र का उच्चारण करने के उपरांत जब समस्त देवतागणों ने इस शांति मंत्र का साथ-साथ पाठ किया तो देखते ही देखते संपूर्ण सृष्टि में चमत्कारिक प्रभाव दिखाई देने लगा।
चारों तरफ चलती हुई आंधियां रुक गई। समुद्र में आया तेज तूफान थम गया। पक्षियों की कर्कश आवाज सुरीली हो गई। चारों तरफ कोयल की कूक सुनाई देने लगी। संपूर्ण सृष्टि में एक अद्भुत शांति की स्थापना हो गई। वह अद्भुत ओम शांति मंत्र आज भी प्रचलित है। जो इस प्रकार है ।
ॐ शांति मंत्र
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
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ॐ शांति मंत्र का अर्थ
इस मंत्र में सृष्टि के निर्माणकर्ता परम पिता परमेश्वर से विनती की गई है कि हे प्रभु इस जगत में चारों तरफ शांति उत्पन्न कीजिए। वातावरण में विचरण करने वाली वायु शांत हो। आकाश शांत हो। धरती शांत हो। जल शांत हो। संपूर्ण जगत शांत हो। समस्त देवतागण शांत हों। ब्रह्म शांत हो अर्थात सर्वत्र शांति की स्थितियाँ हों। चारो ओर शांति हो। हे प्रभु शांति हो। शांति हो शांति हो शांति हो।
ॐ शांति मंत्र को कब करना चाहिए
ॐ शांति मंत्र को घर, पूजा स्थल या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में पूजन के पूर्व या पश्चात अवश्य किया जाना चाहिए। तभी हमें उस पूजन का लाभ मिलता है। हिंदू धर्म की रीतियों में समय-समय पर धार्मिक कार्य, संस्कार, यज्ञ आदि आयोजित होते रहते हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में ऐसा परामर्श है कि बिना ओम शांति मंत्र के कोई धार्मिक कार्य संपन्न नहीं हो सकता। इसलिए इस ओम शांति मंत्र का धार्मिक कार्य में बहुत अधिक महत्व है।
ओम शांति मंत्र के लाभ
- जीवन में स्थिरता आती है़
ओम शांति मंत्र के प्रभाव से हमारे जीवन में स्थिरता आती है। यदि हमारा जीवन उथल-पुथल से भरा हुआ है। हमारा चित्त शांत नहीं है। उसमें स्थिरता नहीं है। तो ऐसे में ओम शांति मंत्र का पाठ हमें स्थिरता प्रदान करता है।
- दैवीय कृपा प्राप्त होती है
ओम शांति मंत्र के शुद्ध एवं विधि विधान से उच्चारण करने से देवी कृपा की प्राप्ति होती है। हममे अपने कार्य के प्रति दृढ़ता आती है और हमें अपने कर्तव्य को लगन से करने की प्रेरणा मिलती है।
- हमारे चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है।
ओम शांति मंत्र के पाठ के पश्चात हमारे घर, मंदिर ,व्यवसायिक प्रतिष्ठान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। जिसके कारण हमें पूजन का अपेक्षित लाभ प्राप्त होने लगता है।
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- वातावरण शुद्ध होता है
धार्मिक कार्यों में हवन के पश्चात जब ओम शांति मंत्र का पाठ किया जाता है तब चारों ओर का वातावरण पूर्णतया शुद्ध और मंगलकारी हो जाता है। हमें धार्मिक कार्यों के सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं। शांति मंत्र के पाठ के प्रभाव से हमें धार्मिक कार्य का प्रतिफल निश्चित रूप से प्राप्त होता है ।
- ओम शांति मंत्र से हमें यजुर्वेद की शरण मिलती है
यह ओम शांति मंत्र यजुर्वेद में लिखा हुआ है़। कहा जाता है़ कि हिन्दू धर्म का कोई भी वेद किसी मनुष्य ने नहीं लिखा है़। दरअसल वेदों के शब्द साकार परमेश्वर के मुख से निकले हुये हैं। इसी तरह ओम शांति मंत्र भी वह मंत्र है़ जो देवताओं की मुख से निकला है। इसलिए यह हमारे धार्मिक कार्यों को सार्थक दिशा प्रदान करता है।