सनातन धर्म और संस्कृति अत्यंत विलक्षण है | इसके सिद्धांत पूर्णतः वैज्ञानिक हैं और इसका उद्देश्य सभी का कल्याण करना है | यद्यपि एक लम्बे काल तक विदेशी क्रूर अक्रान्ताओ के आक्रमण और उनसे उत्पन्न हुए दुष्प्रभावों के साथ-साथ, बढ़ते हुए कलियुगी प्रभावों की वजह से इसमें बहुत सी कुरीतियाँ प्रवेश करती गयीं जिनके निर्मूलन की आज महती आवश्यकता है | लेकिन इसके लिए, सबसे पहले, हमें स्वयं अपने सनातन धर्म और संस्कृति के गौरवशाली अतीत में विश्वास रखना होगा और उसकी धरोहरों को संभाल कर रखना होगा |
जन्म से लेकर मृत्य तक मनुष्य जिन-जिन वस्तुओं एवं व्यक्तियों के संपर्क में आता है और उनसे उनका जो भी क्रिया-व्यापार होता है, उनके ज्ञान-विज्ञान को हमारे ऋषि-मुनियों ने बड़े ही सुनियोजित ढंग से मर्यादित और सुसंस्कृत किया है यहाँ तक कि मनुष्य अपने निवास के लिए भवन का जिस तरीके से निर्माण करता है उसको भी नियमबद्ध किया है |
वास्तु का वास्तविक अर्थ होता है निवास करना अर्थात जिस भूमि पर मनुष्य निवास करते हैं उसे ‘वास्तु’ कहा जाता है | वास्तु शास्त्र के नियमो व उनसे होने वाले लाभ-हानि के बारे में हम किसी और लेख में चर्चा करेंगे | यहाँ हम आपको वास्तु-शास्त्र के एक ऐसे रहस्य के बारे में बताएँगे जिसको जानने के बाद आप, अपने नाम के अनुसार, किसी भी एक विशेष शहर में [जहाँ पर आप रहते हों या रहने की सोच रहे हों] लाभ प्राप्त करेंगे, या हानि होगी या हानि-लाभ बराबर की स्थिति होगी, ये जान सकेंगे |
ये बात एक विशेष प्रकार के वर्ग से जानी जा सकती है जिसका चित्र इस पृष्ठ पर बना हुआ है | इस पद्धति का वर्णन नारद-पुराण में आया है | इस पृष्ठ पर दिए गए चित्र में एक बड़े वर्ग (Square) में नौ छोटे वर्ग (Square) बने हुए हैं | इनमे से आठ छोटे वर्गों में, हिंदी वर्णमाला के अनुसार एक-एक वर्ग है-जैसे ‘त’ वर्ग में हिंदी वर्णमाला के त, थ, द, ध, और न अक्षर आयेंगे इसी प्रकार से ‘प’ वर्ग में प, फ, ब, भ, और म अक्षर आयेंगे | हर वर्ग के लिए एक दिशा निर्धारित की गयी है जो उस वर्ग के आगे लिखी गयी है |
अब उदहारण के लिए मान लीजिये ‘नीरज’ नाम का व्यक्ति ‘गुड़गाँव’ या ‘गुरुग्राम’ में रहना चाहता है तो सबसे पहले उसे अपने नाम का वर्ग देखना होगा | यहाँ पर नीरज शब्द ‘न’ अक्षर से शुरू होता है और न अक्षर ‘त’ वर्ग के अंतर्गत आएगा | इस प्रकार से नीरज का वर्ग ‘त’ वर्ग हुआ और दिशा पश्चिम हुई | अब इसी प्रकार से गुरुग्राम का वर्ग ‘क’ वर्ग हुआ और दिशा आग्नेय हुई | इस वर्ग का एक सामान्य नियम है कि अपने से सम्मुख दिशा में यानि अपने वर्ग से पांचवें वर्ग में निवास नहीं करना चाहिए |
अब देखना है कि नीरज के लिए गुरुग्राम कैसा रहेगा | नीरज के वर्ग से गुरुग्राम का वर्ग छठा वर्ग पड़ेगा इसलिए नीरज के लिए गुरुग्राम योग्य स्थान हुआ रहने के लिए | अब देखना है कि नीरज नाम के व्यक्ति को गुरुग्राम में रहने तथा व्यापार (Business) करने से फ़ायदा होगा या नुकसान | यहाँ पर नीरज की वर्ग-संख्या 5 है और गुरुग्राम की वर्ग-संख्या 2 है | अब हम जिस सूत्र (Formula) का प्रयोग करेंगे वो इस प्रकार है |
व्यक्ति की वर्ग-संख्या . स्थान की वर्ग-संख्या ÷ 8 = धन (लाभ)
स्थान की वर्ग-संख्या . व्यक्ति की वर्ग-संख्या ÷ 8 = ऋण (खर्च)
यहाँ पर सूत्र (Formula) में व्यक्ति और स्थान की वर्ग संख्या को एक साथ रखना है न की उनका गुणा करना है |
इस प्रकार से इस उदहारण में व्यक्ति और स्थान की वर्ग-संख्या एक साथ रखने पर हमें शेष संख्या 52 ÷ 8 = 4 चार मिली | यह व्यक्ति का धन हुआ | और इसके विपरीत, स्थान की वर्ग-संख्या, व्यक्ति की वर्ग-संख्या के साथ रखने पर हमें शेष संख्या 25 ÷ 8 = 1 मिली यह व्यक्ति का ऋण यानि खर्च हुआ | इस तरह से हमें पता चला कि नीरज नाम का व्यक्ति यदि गुरुग्राम में रहकर व्यापार करता है या आजीविका कमाता है तो उसके लाभ और खर्च का अनुपात (Ratio) चार और एक का होगा यानि वो चार रुपये कमायेगा तो एक रुपये उसका खर्च होगा और अंततः वो तीन रुपये फ़ायदे में होगा | तो इस तरह से हम अनुमान लगा सकते हैं कि नीरज नाम का व्यक्ति गुरुग्राम में रहकर आर्थिक उन्नति कर सकता है |
कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यहाँ 8 से भाग देने पर यदि शेष 0 (शून्य) बचता है तो उसे 8 ही मानना चाहिए |
यहाँ पर एक बात हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए कि इस दुनिया में हम अगर कोई उपलब्धि हासिल करते हैं तो अपने परिश्रम, लगन और पुरुषार्थ की वजह से | इसके बिना हासिल की हुई कोई भी उपलब्धि अधिक समय तक नहीं टिकती | अकर्मण्यता सिर्फ नाश करती है | और कर्मठ व्यक्ति की प्रशंसा हर जगह होती है | तो हम कह सकते हैं कि एक लाभ का प्रतिशत हर व्यक्ति के लिए एक ही स्तर की उपलब्धि नहीं देगा | ये तय करेगा उसका कर्म |
कोई भी ज्ञान सिर्फ पुस्तकों में होने से प्रभावी नहीं होता, उसे व्यवहारिकता और अनुभव की कसौटी पर खरा उतरना होता है तभी उसकी उपयोगिता सिद्ध होती है | प्रस्तुत ज्ञान के बारे में भी यही बात कही जा सकती है | आप सभी विद्वत्ज्जनो और पाठकों से अनुरोध है कि आप इस पद्धति को अपने, और अपने स्वजनों पर परखें और अपने अनुभवों को हमसे, हमारे इ-मेल info@rahasyamaya.com पर, साझा (Share) करें, हम आपके आभारी रहेंगे |
धन्यवाद !