दुनिया के बेहतरीन हिल स्टेशन में से एक है शिमला लेकिन यहाँ की खूबसूरत वादियों के कुछ हिस्से डरावने भी हैं
इन्ही में से एक है टनल नंबर 33, एक भूतिया टनल। कालका से शिमला तक की रेल यात्रा में आपको लगभग 103 के लगभग टनल मिलेंगी, परंतु इस पूरे रास्ते में सबसे ख़ास और सबसे लंबी टनल है बड़ोग टनल।
कहते हैं कि जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने प्राकृतिक सुंदरता से भरे हुए शिमला को अपनी समर कैपिटल बना लिया और उन्होंने अपने आने-जाने तथा सामान पहुंचाने के लिए यहां एक रेल मार्ग बनाया।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब अंग्रेज थोड़ा स्थिर हुए तो वर्ष 1898 मैं यह रेल मार्ग बनना प्रारम्भ हुआ।
इस पूरे रेल मार्ग में काफी सुरंगे थीं जिनमे से होकर रेल की पटरीयाँ निकाली गई। इन सुरंगों में सबसे जटिल और परेशान करने वाली थी टनल नंबर तैंतीस।
कहते हैं कि इस टनल को बनाने का काम उस समय के, रेलवे के एक मशहूर अंग्रेज इंजीनियर कर्नल बड़ोग को दिया गया। कर्नल बड़ोग एक काबिल आदमी थे।
काबिल होने के बावजूद शायद कर्नल बड़ोग की गणनाओं में कुछ कमी रह गई थी क्योंकि दोनों तरफ की टनल के सिरों का एलाइनमेंट सही नहीं हो पा रहा थाl
कहते हैं कि इस बात की खबर ब्रिटेन पहुँचने पर बड़े ऑफिसर्स उनसे बहुत नाराज हुए, उन्होंने कर्नल बड़ोग पर एक रुपए की पेनाल्टी लगाई और इस टनल को बनाने के काम से कर्नल बड़ोग को हटा भी दिया।
इन सबसे कर्नल काफी निराश हुए यहाँ तक की उस टनल में काम करने वाले उनके कर्मचारियों तथा मज़दूरों ने भी उनका बहुत मजाक उड़ाया। इन सब घटनाओं से कर्नल बड़ोग काफी आहत हुए और डिप्रेशन का शिकार हो गए।
एक दिन न जाने क्या हुआ कि सुबह जब वह अपने पालतू कुत्ते को उसी टनल में घुमाने ले गए तो वहीं पर उन्होंने अपने आप को गोली मार कर आत्महत्या कर ली।
ऐसा मान्यता है कि तभी से कर्नल बड़ोग की प्रेतात्मा इस टनल में भटकती है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस टनल से अक्सर ही किसी अंग्रेज आदमी के तेज़ आवाज़ में बोलने की आवाज़ें आती हैं।
डरावनी घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए सरकार ने इस अधूरी टनल के मुहानों पर लोहे का गेट लगाकर ताला जड़ दिया था लेकिन वह गेट कुछ ही समय में अपने आप खुल गया और फिर वहां कोई गेट दोबारा नहीं लगाया जा सका।
तो अगली बार जब कालका-शिमला की रेल यात्रा पर जाइएगा तो इस ख़ास बड़ोग टनल नंबर 33 की कहानी को याद रखियेगा।