जब साहस और इच्छाशक्ति के दम पर बुरी तरह से टूट फूट चुका शरीर भी फिर से उठ खड़ा हुआ

german lieutenantज़िन्दगी में कभी न कभी ऐसा समय ज़रूर आता है जब मनुष्य हर तरफ से हार मान जाता है | लेकिन उस समय भी उसे परमेश्वर पर विश्वास होता है | एड्स, कैंसर आदि जैसी कठिन बीमारियों या भयंकर एक्सीडेंट का दंश झेलते हुए निराश हताश मरीजों के लिए प्रेरणास्रोत है यह सत्य कथा !

मरने से आज तक कौन बच पाया है, लेकिन मुख्य बात है कि जब मौत से पहले मौत का खौफ ही जीने ना दे तो ये गलत है और इसे हमारे शास्त्रों में कायरता की संज्ञा दी गयी है !

साहसी जीवट सम्पन्न व्यक्ति जीवन – मरण तुल्य संकटों में भी धैर्य नहीं खोते । साहस एवं सन्तुलन बनाये रखते हैं ! भविष्य के प्रति आशान्वित रहते हुए लगातार अपना कर्म करते हैं !

सच तो यह है कि परिस्थितियाँ मनुष्य को उतना प्रभावित नहीं करती जितना कि उसकी स्वंय की मनःस्थिति । अन्दर का जीवटपन और साहस बना रहे तो हर दुष्कर स्थिति का सामना किया जा सकता तथा सामने आये बहुत से अवरोधों को टाला भी जा सकता है । ये मनुष्य की प्रबल इच्छाशक्ति ही है जो भवितव्यता को टाल सकती है |

इस प्रसंग में जर्मनी के लेफ्टीनेन्ट वुर्त एजंलवी के साथ घटी घटना उल्लेखनीय है। वुर्त एजंलवी पैराटूप विंग के कमान्डर थे। जुलाई 1957 में एक मनहूस दिन उनके जहाज ने उनके साथ उड़ान भरी। अभी विमान को उड़ान भरे कुछ ही समय हुआ था कि जर्मनी के आवेरहठान के निकट उनके विमान में अचानक से भीषण आग लग गई। विमान का क्रेश हो कर नष्ट होना तय था |

1500 फीट की ऊँचाई से छलाँग लगाने के अतिरिक्त उनके पास कोई और चारा नहीं था । पैराशूट की रस्सियाँ ढीली होने के कारण, उससे भी विशेष सहयोग न मिल सका । असन्तुलित अवस्था में 90 किलामीटर प्रति घण्टे की तेज रफ़्तार से नीचे धरती पर आ गिरे । गति अधिक होने के कारण पृथ्वी पर अपने ही भार से दो फीट नीचे धँस गये थे ।

कुछ समय बाद होश आने पर उन्होने शरीर में असह्म पीडा का अनुभव किया और उन्हें लगा कि मानो पीठ का खून जम गया हो । एंजील के सीने की पसलियाँ टूट गई थी । एक फेफड़ा फट गया तथा रीढ़ की हड्डी भी टूट गई थी । खोजी दल उनके क्षतिग्रस्त शरीर को एम्बुलेन्स पर लादकर निकटवर्ती हास्पिटल में ले आया।

डाक्टरों ने परीक्षण के उपरान्त घोषणा की लेफ्टीनेन्ट एंजील के बचने की सम्भावना नहीं है। उसके गुर्दे खराब हो चुके है । शरीर में पीठ एवं रीढ़ की हड्डियाँ बुरी तरह टूट चुकी हैं। फेंफड़ा फट गया हैं।

डाक्टरो की इस घोषणा एवं शरीर की असह्म पीडा में भी एंजील ने हिम्मत नहीं हारी । डाक्टरो से उन्होंने बडे़ साहस एवं विश्वास के साथ कहा , “मैं मर नहीं सकता । अभी मुझे देश के लिए बहुत से काम करने है। आप सभी अपना कर्तव्य पूरा करे” | डॉक्टर को उनके इस गजब के साहस पर बहुत हैरानी हुई और जबरदस्त प्रेरणा भी मिली ।

दो महीने तक लगातार साक्षात मौत से लड़ने के बावजूद भी वे अपने आप को सिर्फ अपने अदम्य साहस के दम पर ही बचा सकने में सफल हुए । चिकित्सको ने एंजील की जिजीविषा एवं साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा की ।

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