दुनिया के सबसे बड़े हत्यारे के ग़ायब होने का रहस्य

auschwitz-camps-de-la-mortदुनिया के नृशंसतम हत्या कांड का जब भी ज़िक्र होगा, पोलैंड स्थित हिटलर के औशोविट्ज़ डेथ कैंप (Auschwitz Death Camp) में नात्ज़ियों द्वारा किया गया यहूदियों का भीषण नरसंहार ज़रूर सामने आएगा | हिटलर द्वारा स्थापित औशोविट्ज़ डेथ कैंप वो स्थान है जहाँ की बातें सुनकर मानवता सिहर उठती है, नसें सुलग उठती हैं और कलेजा काँप जाता है |

ये वो स्थान है जहाँ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान करीब साठ लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया | हिटलर के आदेशानुसार यहाँ काफी लोगों को जहरीली गैस से मार दिया जाता और फिर उनकी लाशों को विशाल अग्नि की भट्टियों में जला दिया जाता | कभी-कभी इस काम की रफ़्तार इतनी तेज़ होती की हर 15 मिनट में लगभग 200 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता |

यहूदियों के प्रति हिटलर की बेइंतेहा नफ़रत यहूदियों के इस भीषण नर-संहार के रूप में सामने आई और औशोविट्ज़ कैंप मौत का दूसरा नाम बन गया,.. एक ऐसा नाम जिसे सुनकर ज़िन्दगी थर्रा उठी | ये कैंप एक ऐसी जगह और इस तरह से बनाया गया था कि यहाँ से भाग पाना लगभग असंभव था |

कैंप में इस तरह के लगभग चार क्रीमेटोरियम या शवदाहगृह थे जिसमे हर रोज़ लगभग 4 से 5 हज़ार लाशें जलाई जाती थी | जो गैस चैम्बर में मरने से किसी तरह से बच जाते उनसे या तो अमानवीय तरीके से काम लिया जाता या उनका, हिटलर द्वारा निर्देशित खतरनाक और दर्दनाक वैज्ञानिक प्रयोगों में उपयोग किया जाता |

ये इतिहास का वो भयानक नरसंहार था जिसमे मरने वालो में 15 लाख तो सिर्फ बच्चे थे | कई यहूदी जो किस्मत वाले थे, अपनी जान बचा के देश छोड़ कर भाग गए और जो बचे वो इस प्रकार के यातना गृहों में, क्रूरता के चलते तिल-तिल कर मरे | युद्ध काल में ही इस भयावह कत्लखाने की खबर समूचे यूरोप में फ़ैल चुकी थी |

आम जन मानस को ये आशा थी की इस युद्ध के बाद ऐसे मौत के कारखाने को चलाने वाले पकड़े जायेंगे और कठोर से कठोर दंड दिया जाएगा मगर हुआ कुछ और ही | उनमे से कुछ तो पकड़ में आये पर काफी सारे हत्यारे गायब हो गए |

इन सब में सबसे खतरनाक औशोविट्ज़ डेथ कैंप का मुख्य प्रबंधक और संचालक तो ऐसा अदृश्य हुआ की उसका कोई सुराग ही नहीं मिला | ये जर्मन नात्ज़ी था जिसका नाम था ओटो अडोल्फ़ आइकमन (Otto Adolf Eichmann) | कुछ यहूदियों ने तो ठान लिया था कि इस हत्यारे को ढूंढ के रहेंगे और इसे ऐसी सज़ा देंगे की लोग वर्षों तक याद रखेंगे |

कई वर्षों तक यह खोज चली | कुछ लोग अप्रतिम धैर्य के साथ, इसकी खोज में, कई महाद्वीपों की ख़ाक छानते रहे लेकिन ये हत्यारा ऐसा ग़ायब हुआ कि इसका कुछ पता ही न चला | सन 1945 में जब हिटलर का पतन हुआ, उस समय इस्राइल का जन्म नहीं हुआ था, लेकिन यहूदियों को पूरा विश्वास था कि उनका इस्राइल देश जरूर बनेगा |

Haganah_fightersउस समय फिलिस्तीन पर अंग्रेजों का शासन था और वे एक अलग इस्राइली देश बनाने को इच्छुक थे | सबसे बड़ी बात, विजेता मित्र राष्ट्रों, अमेरिका और फ़्रांस का पूरा समर्थन इस योजना को था | उसी समय की बात है, यहूदियों ने फिलिस्तीन में ही ‘हैगाना’ (Haganah) नाम से एक पैरा मिलिट्री फ़ोर्स का गठन कर लिया था | फिलिस्तीनी अरबों के साथ उनकी लगभग रोज ही टक्कर हो रही थी |

हैगाना का अपना एक गुप्तचर विभाग भी था जो काफी अच्छे और प्रभावी तरीके से काम कर रहा था | यूरोप में हैगाना के गुप्तचर विभाग का मुख्य अधिकारी था ऐशर बेन नाथन | ये एक बड़ा ही तेज़-तर्रार नवयुवक था |

जिस दिन जर्मनी का पतन हुआ, उसने उसी दिन, अपने मातहत एक उच्च अधिकारी को बुला कर आदेश दिया “आज से तुम्हारा काम है अडोल्फ़ आइकमन का पता लगाना | ध्यान रखना वो मरा नहीं है, वो फ़रार हो गया है | वो युद्ध अपराधी है और उसने हमारे लोगों की हत्याएं की हैं | हम आइकमन को पकड़ना चाहते हैं |”

उसने जिस अधिकारी को ये आदेश दिया था उसका नाम था तूविया फ्रीडमैन (Tuviah Friedman) | तूविया फ्रीडमैन, जिसे नाज़ी हंटर (Nazi Hunter) के नाम से भी जाना जाता है, एक बड़े ही शांत स्वाभाव का लेकिन बड़ा ही शातिर गुप्तचर अधिकारी था | उसमे गज़ब का धैर्य था | वह स्वयं हिटलर के एक यातना शिविर में बंदी रह चुका था |

द्वितीय विश्व-युद्ध की समाप्ति के बाद पूरे यूरोप में दर्जनों शरणार्थी कैंप खुल गए थे जिनमे जर्मन सैनिक व युद्धबंदी हुआ करते थे | तूविया फ्रीडमैन हर कैंप में घूमा, सैकड़ों लोगों से बातें की लेकिन उसको एक भी आदमी ऐसा न मिला जिसने आइकमन को देखा हो या उसका हुलिया बता सकता हो |

उसने उस समय के बड़े देशों जैसे ब्रिटिश, फ़्रांस और अमेरिका की गुप्तचर एजेंसी के अधिकारियों से बातें की | उसने उन लोगों से भी बातें की जो हिटलर के जमाने में, जर्मनी में, जान हथेली पर रखकर विरोधी काम किया करते थे | लेकिन जो कुछ भी जानकारी उसे हाँथ लगी वो उसे अफवाहों का पुलिंदा मात्र लगी |

सब कुछ बिखरा हुआ..बेतरतीब,…जानकारियों का कही कोई तारतम्य नहीं…जैसा लगा | तो अडोल्फ़ आइकमन नाम का वो व्यक्ति आखिर कहाँ गायब हो गया ?

adolf-eichman-and-veronika-eichmannफ्रीडमैन ने थोड़ा और गहराई से जांच की तो उसको पता चला कि अडोल्फ़ आइकमन, अमेरिका के नियंत्रण में चलने वाले जर्मन बंदियों के कैंप में था | साधारणतया, इन कैम्पों में रहने वाले जर्मन बंदियों से पूछताछ की जाती और उनके रिकॉर्ड रखे जाते थे |

इसी प्रकार से अडोल्फ़ आइकमन से भी पूछताछ हुई और उसने भी जर्मन बंदियों द्वारा दिया जाने वाला सामान्य जवाब दिया कि वह देशभक्त जर्मन रहा है और हिटलर के विचारों के प्रचार से बहक गया | उसने यह भी कहा कि अब वह अपने नेता हिटलर के कारनामों यानि जैसे गैस चैम्बर में लाखों लोगों के क़त्ल आदि के बारे में जान रहा है तो उसे अत्यंत दुःख हो रहा है |

इस प्रकार से एक आम जर्मन कैदी के बयान जैसा घिसा-पिटा बयान आइकमन से सुनने के बाद अमेरिकी सैनिकों ने उसकी तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया और उसे एक सामान्य जर्मन बंदी कैंप में भेज दिया गया | सन 1946 में आइकमन अपने चार नात्जी साथियों के साथ, इस बंदी कैंप से भाग निकला |

यहाँ से भागते ही उसने फ़र्जी कागजात बनवाये और वहाँ से जर्मनी चला गया | वहां पर वो ‘हैनिंगर’ के नाम से प्रगट हुआ | यहाँ के एक नगर के मेयर ने उसे नौकरी दे दी, पास के घने जंगल में किसी चीज की देखभाल का काम मिला उसे | ये उसके लिए मनचाही नौकरी थी | आइकमन को लगा कि अब उसके दिन चैन और सुकून से कट जायेंगे |

उधर तूविया फ्रीडमैन को अमेरिकी कैंपो से भी निराशा हाँथ लगी क्योंकि आइकमन, अमेरिका से भी ग़ायब हो चुका था, वो कहाँ था ये अब किसी को नहीं पता था | लेकिन उस यहूदी जासूस ने धैर्य बनाए रखा | नात्ज़ियों से जब्त किये गए लाखों दस्तावेज़ों को छाँटता रहा | छोटे से छोटे कागज़ को भी बिना अपनी आँखों से देखे नहीं छोड़ता |

उन्ही कागज़ के टुकड़ों में से उसे एक कागज़ मिला जिस पर आइकमन के हस्ताक्षर थे और 30 अक्तूबर, 1934 की तारीख़ पड़ी हुई थी | ये, दरअसल, आइकमन की तरफ से एक प्रार्थना पत्र था कि उसे विशुद्ध जर्मन नस्ल वाली वेरोनिका लीबेल से विवाह करने की अनुमति दी जाए |

23 जनवरी 1935 को नात्ज़ी अधिकारियों ने यह अनुमति दे दी और उसी वर्ष 17 मई को आइकमन और वेरोनिका का विवाह हो गया | फ्रीडमैन अब श्रीमती वेरोनिका लीबेल आइकमन की खोज में लग गया | लेकिन उसे कोई सफलता हाँथ न लगी |एक लीड यह मिली कि वो मिस्र चली गयी है, फिर यह पता लगा कि वो दक्षिणी अमेरिका में कहीं है, और फिर पता लगा कि उसका कोई पता नहीं है |

veronika-eichmannकुछ दिनों बाद फ्रीडमैन के लोगों ने उसे बताया कि चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में चेक लोगों ने आइकमन के एक निकट सहयोगी फान बिजलिज्नी को पकड़ा है | वहाँ जाने पर फ्रीडमैन को पता चला कि फान तो आइकमन से नफ़रत करता है और वो तो आइकमन की पत्नी का नाम तक नहीं जानता |

लेकिन उसने फ्रीडमैन को एक बात बतायी कि किसी ड्रोप्ल नाम की जगह पर आइकमन का एक कारखाना था | तूविया फ्रीडमैन ने अपने एक सहायक अधिकारी मानोस, जो दिखने में सुन्दर, शिष्ट लेकिन अत्यंत चालाक था, को ड्रोप्ल भेजा | मानोस, बोलचाल में भी प्रभावशाली और मनोहर था | यूं समझ लीजिये की भरी सभा को अपने प्रभाव में ले लेने की कला मानोस को बखूबी आती थी |

ड्रोप्ल में पहुँचते ही मानोस ने यह फैला दिया कि वह वस्तुतः होलैंड का नागरिक है और एक पुराना नात्ज़ी फ़ौजी अधिकारी है | इस प्रकार से उसे जर्मनों के बीच में अपनी पैठ बनाने में आसानी हुई |

उसने अपने बारे में ये भी प्रसिद्ध किया कि एक सच्चे जर्मन की तरह उसे भी उन जर्मन महिलाओं से बड़ी सहानुभूति है जिनके पति युद्ध में या तो मारे गए या उनका कोई पता नहीं चला | ड्रोप्ल के पास ही एक सुन्दर सी झील थी जिसके चारो और एक खूबसूरत सा टूरिस्ट स्पॉट था वहीँ ऐसी जर्मन महिलाए रहती थी | मानोस यहीं पर एक शानदार से रिसोर्ट में रहने लगा |

आइकमन की पत्नी, श्रीमती वेरोनिका, इसी नगर में रहती थी | मानोस को अब तक पता चल चुका था कि वेरोनिका की सबसे अच्छी दोस्त एक युवा विधवा महिला है | मानोस ने उसी महिला से दोस्ती कर ली |

उसके साथ घूमना, तैरना, साथ में भोजन करना, शराब पीना और देर रात तक बातचीत करना, इस प्रकार से वे दोनों बहुत अच्छे मित्र हो गए और अंततः उस महिला ने मानोस का परिचय श्रीमती वेरोनिका आइकमन से करा दिया | अब मानोस वेरोनिका के घर आने-जाने लगा |

वेरोनिका के तीन पुत्र थे, तीनो को मानोस बहुत पसंद आया | इस प्रकार से वह अब श्रीमती वेरोनिका के पूरे परिवार का मित्र हो चुका था | परिवार में उसकी घनिष्ठता बढ़ती गयी, अब वह वेरोनिका के घर जाता तो आइकमन के चित्र को तलाशता पर वहां उसका कोई चित्र न था |

एक दिन वेरोनिका ने उससे कहा की उसे एक घरेलू नौकरानी की आवश्यकता है | मानोस ने उसे आश्वस्त किया कि वो अपने होटल के मालिक से कहकर इसकी व्यवस्था करवा देगा | लेकिन मानोस ने जिस महिला को वहां नौकरानी के रूप में नियुक्त किया वो वास्तव में उनकी एजेंसी की एक तेज़-तर्रार जासूस थी |

महीनों तक उस महिला ने वेरोनिका के घर नौकरानी की तरह काम किया | वह सब सुनती और देखती रही और अंत में उसने रिपोर्ट दी कि वेरोनिका को नहीं मालूम कि उसका पति आइकमन कहाँ है और किन परिस्थितियों में है और लगता है कि अब उन दोनों में कोई सम्बन्ध भी नहीं रहा |

निराश होकर मानोस ड्रोप्ल वापस आ गया | यहाँ आकर उसे पता लगा कि अडोल्फ़ आइकमन की एक प्रेमिका भी थी, श्रीमती मिस्तेल्बारव, जो ड्रोप्ल में ही रहती थी | वह एक सुन्दर और आकर्षक महिला थी | उसके पास काफी पैसा था | मानोस से उससे भी दोस्ती कर ली और उसको अपना परिचय आइकमन के एक घनिष्ठतम दोस्त के भाई के रूप में दिया |

मानोस ने अपनी नई महिला मित्र को बताया कि उसके भाई के पास बहुत सारी दौलत आइकमन की अमानत के तौर पर पड़ी है और वह चाहता है कि आइकमन का किसी तरह पता चल जाय तो उसकी अमानत उसे वापस कर दी जाय | ये सब सुनकर श्रीमती मिस्तेल्बारव ने अपना सर हिला कर कहा कि उसे अडोल्फ़ के बारे में कुछ भी नहीं पता है |

इन सब से निराश होने के बाद भी मानोस, श्रीमती मिस्तेल्बारव से दोस्ती किये रहा | एक दिन श्रीमती मिस्तेल्बारव के गार्डन में दोनों बैठ कर शराब पी रहे रहे थे | थोड़ी ही देर में वो खुशमिजाज महिला अपना एक फोटो एल्बम ले कर आयी | मानोस को दिखा कर वह हर फोटो के बारे में उसे समझा रही थी |

एक पेज पर एक पुरुष की फोटो थी जिसे देखकर श्रीमती मिस्तेल्बारव ने मानोस से कहा “यही मेरे दोस्त की फोटो है जो तुम्हारे भाई का गहरा दोस्त है | यही अडोल्फ़ है |” पूरी दुनिया में शायद यही एक फोटो बची रह गयी थी जिसे आइकमन नष्ट नहीं कर पाया था |

मानोस को अंदाज़ा लग चुका था कि उसे अपने काम में गहरी सफलता मिली है लेकिन वो वहां पर एकदम शांत बैठा रहा (जैसे उसे कोई खास फर्क न पड़ा हो) | इसके बाद उसने स्थानीय पुलिस की मदद ली, फर्जी राशन कार्डों की तलाशी के बहाने उसने श्रीमती मिस्तेल्बारव के घर तलाशी करवाई और इस प्रकार एल्बम से फोटो निकाल लिया गया और वो फोटो मानोस के हाँथ आ गया |

इन सब के दौरान अडोल्फ़ आइकमन उसी जंगल के रखवाले के रूप में नौकरी करता रहा फिर अचानक एक दिन वो कंपनी ही वित्तीय संकट के चलते दिवालिया हो गयी जिसमे आइकमन नौकरी कर रहा था | अपने सहकर्मियों से उसने बताया कि यहाँ से वो स्वीडन जाएगा लेकिन हकीक़त में अपने दो साथियों के साथ, फ़र्जी सर्टिफिकेट बनवा कर वो इटली निकल गया |

वहां पर वो वहाँ के प्रसिद्ध बंदरगाह पोर्ट ऑफ़ जेनोआ (Port Of Genoa) पहुँचा | वहां पर वो पादरियों के निवास स्थान में पादरी बन कर रहने लगा | इस प्रकार से उसे पोप के राज्य वेटिकन का पासपोर्ट मिल गया जिसमे उसका नाम रेकॉर्डो क्लेमेंट दर्ज़ था | इसी पासपोर्ट के आधार पर वो मध्यपूर्व के देश सीरिया गया जहाँ पहले से ही कई भगोड़े नात्जी जा कर छिपे हुए थे |

यहाँ आइकमन को एक आयात-निर्यात कंपनी में नौकरी मिल गयी | असल में मध्यपूर्व के इन अरबी देशों में नात्ज़ियों ने वहां के यहूदी विरोधी अरब नेताओं से अच्छे सम्बन्ध बना लिए थे | अतः आइकमन के लिए भी परिस्थितियां अनुकूल थीं |

फिर आया 1948 का वर्ष जब इसराइल राज्य की स्थापना हुई | यहूदियों की बढ़ती शक्ति के भय से आइकमन फिर भागा और स्पेन पहुँचा | वहां से वो फिर पोर्ट ऑफ़ जेनोआ पहुंचा | यहाँ उसको दक्षिणी अमेरिकी देश अर्जेंटीना जाने का वीसा मिल गया |

14 जुलाई 1950 को यहाँ की राजधानी ब्यूनस आयर्स पहुँच कर उसने अपना नाम रेकॉर्डो क्लीमेंट दर्ज़ करवाया और अपने को अविवाहित बताया जबकि इस समय आइकमन की आयु 44 वर्ष थी | उसने तय कर लिया था कि अब वह अर्जेंटीना का नागरिक बन जाएगा, काम करके खायेगा और चैन की ज़िन्दगी जियेगा | लेकिन धरती गोल घूम रही थी, अभी उसे अपने कर्मों का हिसाब देना था |

प्रकृति की लीला देखिये कि 60 लाख व्यक्तियों के हत्यारे को अब अपने परिवार की याद आयी | वह अपनी पत्नी वेरोनिका और अपने तीनो बच्चों को अपने पास बुलाने के लिए बेचैन हो उठा |

1951 की ठण्ड और सर्द हो चली थी, दिसम्बर का महीना अपने अवसान की तरफ था | उसी समय श्रीमती वेरोनिका के पास एक पत्र पहुँचता है जिसमे वैसे तो कोई खास बात नहीं लिखी हुई थी लेकिन उस पत्र के अंत में किया गया हस्ताक्षर थोडा जाना पहचाना था | पत्र भेजने वाले का नाम था रेकॉर्डो क्लीमेंट और पता था टुकुमान क्षेत्र, अर्जेंटीना |

उस पत्र को पढ़ने के बाद वेरोनिका ने अपने पुत्रों से कहा कि उनके चाचा रेकॉर्डो उन लोगों को दक्षिण अमेरिका बुला रहे हैं | बच्चों को इस बात की कत्तई भनक नहीं थी कि उनके चाचा रेकॉर्डो ही वास्तव में उनके पिता है | उनको बताया गया कि उनके चाचा रेकॉर्डो किसी कैप्री नाम की कंपनी में काम करते है जो बाँध बनाती है |

WP_Adolf_Eichmannवेरोनिका ने सफ़र की तैयारी शुरू कर दी थी | उसने लीवेल के नाम से अपना और बच्चों का पासपोर्ट बनवाया और एक दिन चुपचाप, ख़ामोशी का दामन ओढ़े निकल पड़ी | जुलाई 1952 में उसका जहाज ब्यूनस आयर्स पहुँचा, वहां से वो ट्रेन से टुकुमान पहुँची | रेलवे स्टेशन पर एक गन्दा सा कपड़ा पहने व्यक्ति उनकी प्रतीक्षा कर रहा था |

लगभग सात साल बाद परिवार का मिलन हुआ था | परिवार प्रसन्नता के साथ रहने लगा | बच्चे शिकार खेलते, तैरते, घूमते और आइकमन भी अच्छा वेतन पा रहा था | उधर वहां से हजारो किलोमीटर दूर तूविया फ्रीडमैन अपनी असफलताओं पर झुंझला रहा था |

उसे उसके लोगों ने बताया कि श्रीमती आइकमन ने 1951 में एक हलफनामा दाखिल करवाया था कि उसका पति अडोल्फ़ आइकमन मर चुका है | इतने वर्षों तक की उसकी मेहनत बेकार हो चुकी थी |

और अब तो हैगाना के अधिकारी भी कहने लगे थे कि आइकमन की तलाश तो केवल फ्रीडमैन और मानोस की मृगतृष्णा ही है और कुछ नहीं | वे दोनों मूर्ख हैं, आइकमन तो कभी का मर चुका है | पर फ्रीडमैन हर बार सर हिलाता और कहता कि “नहीं, वह जीवित है..वो है…मै अपनी अंतरात्मा से महसूस करता हूँ |”

इसके बाद तूविया फ्रीडमैन को जो सरकारी सहायता मिल रही थी उसमे भी कटौती कर दी गयी | कहते हैं कि इसके बाद भी वह स्वयं से धन संग्रह कर के यहाँ तक की अपनी पत्नी के आभूषण बेच कर अपनी खोज में लगा रहा |

उधर कैप्री कंपनी का काम ख़त्म हो गया | बाँध बन जाने के बाद आइकमन एक बार फिर बेरोजगार हो चुका था | कुछ दिन तक वह एक कारखाने में काम करता रहा फिर कुछ पैसे जमा कर अपनी एक कपड़ा धोने की लांड्री शुरू की लेकिन उसे घाटा हुआ | जब रोटी के भी लाले पड़ गए तो काम की तलाश में वो ब्राजील निकल गया |

फिर 1954 में परागुवे में काम किया उसके बाद अगले वर्ष कुछ दिनों तक बोलीविया में काम किया | आइकमन, अन्य दक्षिणी अमेरिकी देश, जैसे चिली, पेरू और उरुग्वे भी गया अंत में सन 1956 में अर्जेंटीना वापस आ गया | बेरोजगारी का मारा आइकमन, 1957 में फिर से सीरिया गया लेकिन वहां भी चीजें ठीक से हुई नहीं अतः वापस अर्जेंटीना आ गया |

उधर तूविया फ्रीडमैन का धैर्य जवाब देने लगा था | निराशा के बादलों में गोते लगाते फ्रीडमैन को कही कोई सुराग मिलता भी तो उसके पहुँचने से पहले कबूतर उड़ चुका होता | अप्रैल, 1960 में श्रीमती आइकमन ने एक भयंकर भूल की | वो कुछ दिनों के लिए ऑस्ट्रिया वापस आयीं और अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए आवेदन दिया |

पासपोर्ट कार्यालय में जब लीवेल नाम का पासपोर्ट आया तो उसकी भनक इस्राइली जासूसों को लग गयी | इसका नतीजा ये हुआ कि जब वो पासपोर्ट ऑफिस से बाहर निकली तभी से इस्राइली गुप्तचर उनके पीछे लग गए |

वो अर्जेंटीना वापस जाने के लिए हवाई जहाज का टिकट बनवाने गयी तो उनकी सहायता करने वाला ट्रेवल एजेंट इस्राइली जासूस था, जिस हवाई जहाज से यात्रा करके वो ब्यूनस आयर्स आयीं उस पर भी सीक्रेट एजेंट था, यहाँ तक की हवाई अड्डे से जिस टैक्सी पर बैठ कर अपने घर गयीं उसका ड्राईवर भी एक इस्राइली जासूस था |

तूविया फ्रीडमैन और उसके सहायक यहूदी गुप्तचरों की वर्षों की मेहनत सफल हुई | उनको पता लग चुका था कि उनका शिकार कहाँ छिपा बैठा है | उन्होंने आइकमन यानी क्लीमेंट के मकान के ठीक सामने एक मकान किराए पर ले लिया | आइकमन का परिवार अब चौबीसों घंटे निगरानी पर था |

इन दिनों आइकमन, एक मोटरकार बनाने वाले कारखाने में काम किया करता था | इतने वर्षों तक किसी भी पकड़ से बचे रहने के कारण वो अपने पुराने पापों को भूल चुका था और आश्वस्त हो चुका था कि वो पूरी तरह सुरक्षित है और खतरे से बाहर है |

उसको इसका अंदाजा भी नहीं था कि जब वो कारखाने जाता है, या वहां से वापस आता है या किसी रेस्टोरेंट में खान-पीना खाता, हर वक़्त दो निगाहें उसकी निगरानी कर रही होती | पास के पार्क में वो जब बेंच पर बैठता तो भी पास की बेंच पर कोई उसका निगेहबान होता | इन जासूसों में कुछ ऐसे यहूदी भी थे जिनकी चमड़ी पर आइकमन ने खुद, औशोविट्ज़ में, लोहे से दाग़ कर क़ैदी नंबर डलवाया था |

फ्रीडमैन अब प्रसन्न था | उसके चेहरे पर अब गहरी संतुष्टि का भाव रहता | उसने ये व्यवस्था तो पक्की कर ली थी कि आइकमन उसकी पकड़ से बाहर न निकल सके लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी मुंह फाड़े खड़ा था कि उसे अर्जेंटीना से इस्राइल कैसे लाया जाये ?

Adolf_Eichmann_takes_notes_during_his_trial_USHMMअर्जेंटीना के हवाई अड्डे की कार्यवाही को पूरा करके उसे ले जाना असंभव था | अब उनके पास एक ही तरीका बचता था कि उसका अपहरण किया जाए लेकिन इस काम में बहुत बड़ा ख़तरा था | दोनों देशो के बीच में एक्स्ट्राडिशन ट्रीटी जैसी कोई चीज नहीं थी अतः ये अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के विरुद्ध होता | पकड़े जाने पर दोनों देशों के बीच जबरदस्त कूटनीतिक संकट खड़ा हो जाता |

लेकिन ईश्वर ने उन्हें एक मौका दिया | अर्जेंटीना के स्वतंत्रता की डेढ़ सौवीं वर्षगाँठ आयी | ये अर्जेंटीना के लिए एक बड़े उत्सव का अवसर था | संयोग से इसी अवसर पर अर्जेंटीना और इस्राइल के बीच हवाई यात्रा आरम्भ हुई |

इस्राइल से एक विमान अपनी पहली यात्रा पर ब्यूनस आयर्स आया | इस जहाज के साथ ही इस्राइल से एक बड़ा शिष्टमंडल भी आया | बस यहीं से योजना बनाई गयी कि आइकमन का अपहरण कर के उसे इसी विमान से इस्राइल ले जाया जाए |

उसके दो दिन बाद की बात है | आइकमन के सामने वाले घर के बाहर एक मोटरकार खड़ी थी | अन्दर चार लोग बैठे थे, एक व्यक्ति बाहर, बिलकुल शांत भाव से, चहलकदमी कर रहा था | शाम हो चुकी थी, आइकमन काम से, रोज की तरह, घर लौट रहा था | अचानक उसके सर पर पीछे से चोट हुई, और उसकी चेतना कुछ समय के लिए लुप्त हो गयी |

स्टार्ट हुई मोटर के पीछे वाले भाग में उसे डाल दिया गया और उसमे बैठे चारो लोग के साथ वो मोटर ग़ायब हो गयी | ना कोई शोर-शराबा, न खून खराबा, किसी के कुछ समझ पाने से पहले ही उनका काम हो चुका था | आइकमन को ले जाकर एक बेहद सामान्य से मकान के एक कमरे में बाँध दिया गया और उस पर कड़ी निगरानी रखी गयी |

इस्राइली जहाज के इस्राइल लौटने में अभी 9 दिन का विलम्ब था, इस बीच में आइकमन को कई इंजेक्शन लगाए गए | इसका नतीजा ये हुआ कि आइकमन की बोलने की क्षमता चली गयी और उसकी आँखों की रौशनी भी बहुत कम हो गयी | उधर वेरोनिका ने जब देखा कि उसका पति आइकमन घर नहीं लौटा तो उसे लगा की आइकमन का एक्सीडेंट हो गया है |

उसने आस-पास के सभी अस्पतालों और लावारिस मरने वालों को दफ़न किये जाने वाले स्थानों पर तलाश की लेकिन कुछ पता न चला | तीन दिन बाद उसने पुलिस को खबर दी लेकिन पुलिस भी आइकमन यानी क्लीमेंट का कोई सुराग नहीं पा सकी |

जिस दिन इस्राइली विमान वापस जाने वाला था उस दिन हवाई अड्डे पर इसराइल जाने वाले यात्रियों की भारी भीड़ थी, जो की स्वाभाविक भी था | इसी भीड़ में इस्राइली पासपोर्ट तथा अन्य यात्रा-दस्तावेजों के साथ आइकमन भी था | उसके यहूदी साथियों ने ब्यूनस आयर्स हवाई अड्डे के अधिकारियों को बताया कि उनका वो बेचारा साथी बहुत बीमार है |

इस प्रकार से आइकमन सारे चेक-पॉइंट पार कर के उस इस्राइली विमान में बैठ गया | शिकारियों ने अपने शिकार को दबोच लिया था | एक ऐसा शिकार जिसने अपने समय में कई निर्दोषों का अपने क्रूर पंजे से शिकार किया था |

इस्राइल में आइकमन पर मुकद्दमा चला | उसके द्वारा पीड़ित, त्रस्त अनेक व्यक्तियों ने उसके खिलाफ़ गवाही दी | अंत में आइकमन ने अदालत के सामने अपना बयान दिया | इस बयान में उसने कहा—

देशो और महाद्वीपों में घूमते भागते मै थक गया हूँ | मैं कातिल नहीं हूँ | मैं स्वामिभक्त, आज्ञा पालन करने वाला, कार्य-कुशल सैनिक रहा हूँ और जो कुछ मैंने किया, वह अपनी पितृ भूमि से प्रेम की भावना से प्रेरित होकर ही किया | मैंने कभी दगाबाज़ी नहीं की |

…..मैंने गहराई से विचार-मंथन किया है और इसके बाद मेरा दृढ़ मत है कि मैं सामूहिक कातिल (Mass Murderer) नहीं हूँ | मेरे अधीन काम करने वाले भी कातिल नहीं है, पर इमानदारी के साथ मैं कहूँगा कि मैंने क़त्ल करने वालों की सहायता की | मुझे नाज़ी दल के नेतृत्व पर पूरा विश्वास था और पिछले महायुद्ध की स्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप मैंने साफ़ दिमाग़ और सच्चे दिल से अपना कर्तव्य निभाया |

…मै अच्छा जर्मन था, अच्छा जर्मन हूँ और हमेशा अच्छा जर्मन रहूँगा— आइकमन को मृत्यदंड दिया गया | मरने से पहले उसने नारा लगाया – हिटलर जिंदाबाद | नाज़ी पार्टी जिंदाबाद | जर्मनी जिंदाबाद |

Tuvia_Friedmanआइकमन का अपहरण और उसका मुकद्दमा कई महीनो तक दुनिया-भर के अखबारों में चर्चा का विषय बन गया | इस्राइली गुप्तचरों और उनके मुखिया तूविया फ्रीडमैन के कार्यों की हर तरफ़ प्रशंसा हुई | आइकमन की मौत पर उसके घर वालों को और कुछ कट्टर नात्ज़ियों को छोड़कर किसी ने भी आंसू नहीं बहाया |

लेकिन संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के उल्लंघन पर सवाल उठाने पर इस्राइल की विदेश मंत्री, जो बाद में वहां की प्रधानमंत्री भी बनी, श्रीमती गोल्डा मायर ने कहा “मैं इसके लिए अर्जेंटीना गणतंत्र से क्षमा मांगती हूँ, लेकिन सच तो ये है कि इस मामले में नैतिक नियम इस्राइल की तरफ़ है |”

द्वितीय महायुद्ध में हिटलर और उसके साथियों, अनुचरों ने यहूदियों को बहुत सताया लेकिन पिछली शताब्दी से लेकर अब तक इस्राइली गुप्तचरों ने जिस तरह से अपने अपराधियों को पूरी दुनिया में चुन-चुन कर सज़ा दी है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है | राष्ट्र के प्रति समर्पित, तूविया फ्रीडमैन जैसे लोग जिस देश में अपनी सेवाए देंगे उसकी सीमाएं हमेशा सुरक्षित रहेंगी |

 

 

 

 

 

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